Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia
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पयुषणा - ष्टादिका व्याख्यान
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11| 26 11
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अने सूर्यना विमानना तेजथकी रात्रि थयेली पण कोइए जाणी नहि. ते समये संध्याकाळ जाणी चंदना प्रवर्त्तनी उपाश्रये जह प्रतिक्रमणादि सर्व क्रियाने करी सती. त्यारबाद सूर्य-चंद्रमा पोताना स्थाने गया ने अंधकार थवाथी मृगावती भय पामीने उपाश्रये गइ; अने इर्यापथिकि प्रतिक्रमी, प्रतिक्रमणने करी स्वामिनी चंदनाने कहेवा लागी के हुं भोळी आटली वेळा त्यां रही. ते समये चंदना प्रवर्त्तनीए करूं के मोटा कुळने विषे उत्पन्न थयेलां एवां के जेमणे दीक्षा ग्रहण करेल छे, तेमने रात्रिने विषे उपाश्रय बहार रहेवुं युक्त नथी. ते अवसरे मृगावती पगने विषे पडीने बोली के आ महारो अपराध अजाणतां थयो छे माटे मने क्षमा करो. फरीथी ए प्रकारनो अपराध नहि करूं. ते समये भगवती चंदनाने निद्रा आवी. आ समये मृगावती पोताना कर्मनी निंदा-गहने करती सर्व शुभाशुभ कर्मनो नाश करी केवलज्ञान पामी. ते प्रस्तावे त्यां सर्पने आवतो देखीने मृगावतीए चंदनानो हस्त जरा दूर कर्यो, तेथी चंदना अकस्मात् जागृत थवाथी बोली के हे सुभगे । तें म्हारो हाथ दूर केम कर्यो ? त्यारे मृगावती कां के सप आवे छे तेथी. सहसा चंदनाए क के अगाढ अंधकारने विषे तें सर्पने केम जाण्यो ? मृगावतीए कहां के ज्ञानवडे करीने, चंदनाए कहां के शुं ज्ञान प्रतिपाति के अप्रतिपाति ? मृगावतीए की स्वामिनी ! तमारा प्रसादथी अप्रतिपाति आवा वाक्यने श्रवण करी हा ! हा! में केवलीनी आशातना करी! एम कही चंदना मृगावतीना चरणकमळमां पडी अने खमावतां ज केवलज्ञान उत्पन्न थयुं, माटे सर्व जीवोए आवा प्रकारनो मिच्छा मि दुकडं देवो; परंतु क्षुल्लक साधु तथा कुंभारना जेवो मिच्छामि दुक्कडं देवो नहि. तथाहि कोइक गामने विषे कोइक मुनि ग्रामानुग्राम विहार करतां कुंभारनी रजा लइ तेमनी शालाने विषे भूमि प्रमार्जन करी एक देशने विषे रह्या. हवे
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भाषान्तरम्
॥ २८ ॥

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