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भाषान्तरम्
पर्युषणाष्टान्हिका व्याख्यान
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मोकल्या. ते माणसो गांधारनगरमां बीराजता गुरुमहाराजने मळ्या; तेथी अकबर बादशाहना बहुमानथी गांधारनगरथी गुरुमहाराजे दिल्ली तरफ विहार कर्यो, अने संवत् १६३९ ना जेठ वदी तेरसने दिवसे दिल्ली पहोंच्या, अने गुरुमहाराज अकबर बादशाहने मळ्या. त्यारवाद गुरुमहाराजनुं बहुमान कयु. त्यारवाद गुरुमहाराजे महान् धर्म उपदेश आप्यो. ते आ प्रमाणे
“धन्यानामिह धर्मकर्मविषया वांछापि संजायते, धन्यानामिह तत्प्रवृत्तिरचना केषांचिदेवोद्भवेत् । धन्यास्तस्य च यांति पारमथवा धन्याः प्रशंसंति ये,
घन्यास्तेऽपि च येऽन्यलोकविहितं धर्म न निंदंति ये ॥१॥ भावार्थ:-हे महानुभाव ! राजन् ! महा कष्टवडे करी प्राप्त थएलो छ मानवजन्म जेने, एवा मला भाविक भव्य धन्य जीवोने ज आ संसारना अंदर धर्मध्यान करवा संबंधी उत्तम वासना उत्पन्न थाय छ, तथा धर्मध्यान प्रवृत्तिनी रचना पण केटलाएक धन्य जीवोना हृदयकमळने विषे स्फुरायमान थइ उद्भवपणाने पामे छे, तथा ते धर्मकर्मनो पार धन्यजीवो ज पामे छे, तथा जे धर्मध्याननी प्रशंसा करे छे तेज धन्य कहेवाय छे, तथा जे अन्य जीवो धर्मध्यान करे छे तेने देखी जे धर्म अने धर्मिष्ठ जीवोनी निंदा करता नथी, तेज लोको आ दुनियाने