Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia
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पर्युषणा
भाषान्तरम्
ष्टान्हिका
व्याख्यान
विषे धन्य छे. किंबहुना. हे राजन् ! सर्वे धर्मोनो समावेश केवळ एकज जीवदयाने विषेज थाय छे, अने जे धर्मोमां जोवदया नथी ते धर्मों साक्षात्रूपे धर्मपणे कथन करी शकाता नथी; किंतु हिंसकरूपेज गणत्री करवामां आवे छे, माटे दयाधर्म युक्तज धर्म श्रेष्ठ छे. जे माटे का छे के
"कृपानदी महातीरे, सर्वे धर्मास्तृणांकुराः। तस्यां शोषमुपेतायां, कियन्नंदति ते चिरम् ॥१॥" | भावार्थ:-दयारूपी नदोना महान् तीर (तट, कांठाना विषे) विषे सर्वे धर्मों तृणना अंकुरा समान है. कृपारूपी नदी शोषाइ गये सते ते सर्व धर्मरूपी तृणांकुरो केटलो वार सुधी आभावने धारण करी शकवाना इता? कहेवानो सार ए छे के-जेम पाणी विना तृणना लीला अंकुरा शुष्क थइ जाय छे तेम दया विना सर्व धर्मों | सर्वथा शुष्कभावने पामेला व्यर्थ जाणवा. किंबहुना. केवळ जीवदयामय धर्मज जीवोने संसारथकी मुक्त करनार छे.
आवी रीते गुरुमहाराजे धर्म उपदेश आपवाथी, आग्राथी अजमेरनगर सुधी मार्गने विषे दरेक कोश कोश उपर कूवा, मनाराओ बनावीने पोतानुं कला कौशल्य देखाडवाने माटे दरेक मनारा मनारा प्रत्ये सेंकडो शींगडा स्थापन करेलां इतां ते सर्वेने अकबरे दूर कढावी नाख्या. आवी रीते हिंसा करवानी मतिवाळो अकबर बादशाह पण हीरविजयसूरीश्वर महाराजना सदुपदेशथी दयाना परिणामवाळो थयो. एकदा अकबर बादशाह गुरुमहाराजने कहेवा लाग्यो के-आपना दर्शन माटे उत्कंठित थइ दूर देशथी बोलावी अमोए आपने महापरिश्रम आपेल है। तथापि आप अमारुं कांइपण ग्रहण करता नथी माटे आपने जे पदार्थ रुचे तेनी आप साहेबजी अमारा पासे
Atar ॥ ५५॥

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