Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia
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भाषान्तरम्
पर्युषणाष्टाह्निका
व्याख्यान
॥५३॥
देखाडे छे. त्यारबाद लोकोए महा कष्टवडे करी समजाव्यो, तोपण ते मूर्खनु हृदय भेदाणुं नहि; कारण के-मूर्खने बोध थवो महादुर्लभ छे. कयु छ के
'यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किम् ।
लोचनाच्यां विहीनस्य, प्रदीपः किं करिष्यति ? " ॥१॥ भावार्थ:-जे माणसने पोतानी बुद्धि नथी तेने शास्त्रनो उपदेश शुं करी शकनार हतो? अर्थात काइज नहि. कारण के जे माणसोना नेत्रो नाश पाम्यां छे ते माणसने दीपक शुं प्रकाश करवानो हतो ? अर्थात् कांइ ज नहि.
ते माटे मूर्खपणानो त्याग करी शास्त्रोक्त मार्गने विषे चालवू, तथा अष्टाह्निका पर्वने विषे अमारीना पडहनी उद्घोषणा कराववी जेमके संपति राजाए पोताना त्रणे खंडने विषे अमारी उद्घोषणा करावी हती, तथा श्रीमान् कुमारपाळ महाराजाए पण पोताना अढार देशमां अमारी प्रवर्तावी मारी शब्दने पृथ्वीपार कर्यों इतो, तथा सांपतकाळने विषे पण परम प्रभावक धर्मगुरु श्रीमान् हीरसूरीश्वरजी महाराजना परम कृपामय सदुपदेशथी मुसलमान | एवो पण अकबर बादशाह पण पोताना समग्र देशमा छ मासनी अमारी पळाववा शक्तिमान थयो हतो, ते संक्षेपथी कथन करवामां आवे छे.
एकदा प्रस्तावे अकबर बादशाह पोताना प्रधानादिकना मुखथी श्रीमान् हीरसूरीश्वर महाराजना गुणग्रामना वर्णनने श्रवण करी तेश्रोने बोलाववा माटे पोताना नामांकित फरमान सहित अकबर बादशाहे पोताना माणसोने

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