Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ पर्युषणा - ष्टाह्निका व्याख्यान ॥ ६० ॥ तेथी एक डगलुं मात्र आगळ चालवा समर्थमान नथी. तथा टोपरा (काचली) ने विषे रहेल प्रामुक जळवडे वस्त्रना छेडाने आर्द्र ( भीनो) करी पोताना हृदयने विषे स्थापन करेल छे, तथा वे शिष्यो वैयावच्च करे छे. एवी रीते देखीने सेवकोए बादशाहने सर्व स्वरूप कां, तथा बादशाहे सुखपाल ( पालखी ) मोकलावी. त्यारबाद शांतिचंद्र उपाध्यायजीए एक काष्टनी वळी मंगावी तेना उपर आरोहण थया, अने बने शिष्यो तेना छेडाने उपाडीने चाल्या. ते प्रकारनी अवस्था सहित गुरुमहाराजने आवता देखी बादशाह विचार करवा लाग्यो. अहो ! गुरुमहाराजनुं सत्व केवा प्रकार छे ? खरेखर गुरुमहाराजने धन्य छे, के जेओ महारा पछाडी कष्ट वेठीने आवे छे ! अन्यथा महारा पासे तेमने शुं लाभ छे ? मारा वस्त्र, पात्र तेमज तृणमात्रने पण ग्रहण करता नथी. अहो ! समर्थ एवा गुरुमहाराजनी निरीहता कोइ अलौकिक प्रकारनी छे. त्यारबाद राजा सामो जइ नमस्कार करो कहेवा लाग्यो हे स्वामिन्! महारा माटे आप साहेब महादुःखने पाम्या, माटे महारो अपराध क्षमा करो. आज में आपना चरणकमळ नहि देखेल होवाथी आपने आवा प्रकारनी तस्दी आपी छे. हवे पछी आपे आवी रीते महत् प्रयाण न कर. धीमे धीमे पछाडी आवकुं. एम कही क्रमे करी बादशाह देशाधिपुर प्रत्ये पहोंची तेनो घेरो घाली रह्यो, अने बार वर्ष व्यतीत थयां परंतु ते कील्लो स्वाधिन थयो नहि; एकदा मुसलमानो बादशाहने कहेवा लाग्या, " जीवे जपुन पातस्याहुंकी जादीजं छती घडी घडीकी बला दूर साहिब रे राज ए शांतिचंद्र सेवराकुं वार वार तुम सलाम कदम पोसी करते हो, दीन दुनीके पातस्याह अदवी खुदा हो कर उस वास्ते गढ लीया नहि जाता है. " एवां वचनो श्रवण करी बादशाह मौन करी रह्यो अने ते स्वरूप गुरुमहाराजने कां; तेथी गुरु भाषान्तरम् ॥ ६० ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72