Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia

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Page 49
________________ पर्युषणा - ष्टान्हिका व्याख्यान ।। ४५ ।। नवकार गणवो. आवी रीते चालीश लोगस्सने पच्चीश श्वासोश्वासे गुणवा तथा एक नवकारने गणवो, तथा चौमासी प्रतिक्रमणने विषे पांच सो ( ५०० ) श्वासोश्वासनो कायोत्सर्ग करवो. वीस लोगस्स गणवाना सद्भावथी तथा पाक्षिक प्रतिक्रमणे विषे त्रण सो (३००) श्वासोश्वास परिमाणनो कायोत्सर्ग करवो. बार (१२) लोगस्सना सद्भावथकी. हवे एक एक श्वासोश्वास मध्ये केटला प्रमाण देवतानुं आयुष्य बांधे छे, ते कहे छे-वे लाख पिस्ताळीश हजार चारशे ने आठ पल्योपम प्रमाण देवतानुं आयुष्य बांधे छे. कं छे के " लक्खदुगसहस्सपणचत्त, चउसया अटू चेव पलियाई । किंचूणा चउभागा, सुराउबंधी इग उसासे ॥ १ ॥ भावार्थ:- बे लाख पिस्ताळीश हजार चार सो ने आठ पल्योपम (२४५४०८) मां कांइक न्यून चार भाग जेट एक श्वासोश्वासने विषे देवतानुं आयुष्य बांधे छे. एक पल्योपमना नव भाग करवा अने ते नव भागमांथी चार भाग ग्रहण करवा, एटला प्रमाणवालुं देवतानुं आयुष्य बांधे छे. समस्त नवकार आठ श्वासोश्वास प्रमाण, तेने विषे ओगणीश लाख त्रेसठ हजार बसो ने सडसठ ( १९६३२६७) पल्योपम प्रमाण देवतानुं आयुष्य बांधे छे, एवी रीते समस्त लोगस्सना पच्चीश: श्वासोश्वासमां एससठ लाख पांत्रीस हजार बसो ने दश (६१३५२१०) एटला पल्योपम प्रमाण देव आयुष्य बांधे छे-देवलोकने विषे एटला पल्योपम प्रमाण देवतानुं आयुष्य होय छे त्यां उत्पन्न थाय छे; कारण के नवकार तथा लोगस्सना DOECOOKES00000 भाषान्तरम्

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