Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia

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Page 38
________________ भाषान्तरम पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान ॥३४॥ निहाळतं हतुं. आ समये सूर्ययशाराजानो धर्मने तथा पर्वने विषे अविचळ प्रेम अने निश्चयपणुं जाणी इंद्रमहाराज | चमत्कार पाम्या. ते समये समग्र विश्वने वशवर्ती करवानुं सामर्थ्यपणुं धारण करनारी उर्वशी देवीए अकस्मात् मस्तक कंपायमान करवानुं कारण इंद्रमहाराजने पूछयु के-हे स्वामिन् ! हालमा मस्तक कंपायमान करवानुं कारण | तो काइ पण देखी शकातुं नथी तो क्या प्रकारना निमित्तथी तुष्टमान थयेला नाथे (आपे) मस्तक कंपायमान कर्य ? ते समये इंद्रमहाराज बोल्या के-में सांपतकाळे ज्ञानदृष्टिवडे करीने भरतक्षेत्रने विषे श्रीमान् ऋषभदेवस्वामीनो | पौत्र (पुत्रनो पुत्र) अने भरतचक्रवर्तीनो पुत्र अयोध्यानगरीनो स्वामी सूर्ययशा राजा साविकोने विषे शिरोमणि दीठो, अने ते अष्टमी चतुर्दशीने विष तथा पर्वने विषे तप वगेरे धार्मिक क्रिया करे छे, ते थकी देवता बहु यत्ने करीने पण चलायमान करवा समर्थमान नथो. जो सूर्य पूर्व दिशाने अतिक्रमण करी पश्चिम दिशाने विषे उदय पामे, तथा निश्चल मेरु वायुथी कंपायमान थाय, तथा समुद्र मर्यादाने मूके, तथा कल्पवृक्ष निष्फल थाय; | तोपण सूर्ययशा राजा कंठगत प्राण थये छते पण जिनेश्वर महाराजनी आज्ञानी पेठे करेला निश्चयने छोडे तेम | नथी. एवा इंद्रमहाराजाना वाक्यने श्रवण करी किंचित् मनमां विचार करी प्रत्युत्तर देवा लागी के-हे स्वामिन् ! युक्त-अयुक्तने जाणनार तमे मनुष्यने विषे आवा प्रकारना निश्चयनी शुं प्रशंसा करो छो ? जे सात धातुथकी उत्पन्न थयेला शरीरने धारण करवावाळो अननो कीडो तेने देवता पण चलायमान करवा शक्तिमान नथी, आवा तमारा वचन उपर कोण श्रद्धा धारण करे ? म्हारा गानरसपूर वडे करी कोना कोना विवेक प्रमुख गुणो नाश पामता नथी-अपि ते सर्वेना गुणो नाश पामे छे ते माटे हुँ त्यां जइ तेने शीघ्रताथो व्रतथकी भ्रष्ट करीश. आ ॥ ३४॥

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