Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia

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Page 45
________________ पर्युषणा - ष्टाह्निका व्याख्यान ॥ ४१ ॥ OOSEBOOK TO OKHO भर्त्तुर्देषकरी कलंकसहिता कुक्षिभरी सर्वदा, कद्रूपा गुरुदेवभक्तिरहिता भार्या भवेत्पापतः ॥ १ ॥ 35 भावार्थ:- श्रीमान् शास्त्रकारमहाराजा कथन करे छे के प्राणीना महान् पापकर्मना उदयवडे करी नीच स्त्रीभोनी प्राप्ति थाय छे. प्रबळ पापना उदयथी वाचाला कहेतां महा लबाड अने लवारो करनारी एवी तथा निरंतर क्लेश छे जेने प्रिय एवी अर्थात् महाक्लेशने करनारी तथा वक्रगतिवाळी कुटिला तथा क्रोधवडे करी सहित तेमज निर्दया तथा मूर्खी तेमज पारकाना मर्मने प्रकाश करवावाळी तथा कृपण तेमज मायावी बाळको समान बाळचेष्टा करनारी तथा भर्त्तारना उपर द्वेष करनारी तथा कलंक सहित तेमज निरतर पोताना ज उदरने भरवावाळी तथा कदरूपी ( खराब रूपवाळी ) तेमज देवगुरुनी भक्ति रहित स्त्रीओ महापापना उदयथी प्राप्त थाय छे. हे स्त्रीओ ! मने पण महापापना उदयथी तमारा जेवा मलीन, नीच अने धर्मध्वंसी एवी तमो प्राप्त थएली छो; कारण के जे त्रण लोकनो नाथ के तथा ऋण लोकने वंदन करवा लायक छे, ते देवना प्रासादनो भंग करवाने माटे कहो छो तो तेम कोण केवी रीते करे ? तेनो विचार करो. अर्थात् ते कर्त्तव्य महाराथी बनी शके तेम नथी. हे स्त्री ! हुं पोते ज महारा वचनथी बंधाएल हूं, ते माटे मने वचनमुक्त करवा माटे धर्मना लोप सिवाय अन्य कांइ पण मागणी करो. पर्वनो लोप तथा चैत्यनो नाश हुं कोइ पण प्रकारे करनार नथी. ते सांभळी उर्वशी किंचित्मात्र हास्य करीने बोली के हे नाथ ! जे जे वचनो कहीए छीए ते तमाराथी पाळी शकात नथी. भाषान्तरम् ॥ ४१ ॥

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