Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia

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Page 41
________________ पर्युषणा - ष्टाह्निका व्याख्यान ॥ ३७ ॥ BOKELETOOREEN SKOO महोत्सव थयो. त्यारबाद बनेना प्रीति रसने विषे आकर्षण पामेको राजा संसारने विषे तेना भोगने ज साररूपे मानतो थको अन्य कर्त्तव्योने बिसारी ते बन्नेना साथे विविध प्रकारना भोगने भोगवतो, सुखवडे करी काळने निर्गमन करवा लाग्यो. एकदा प्रस्तावे संध्या समये ते बन्ने स्त्रीओ सहित सूर्ययशाराजा राजमहेलना झरुखामां बेठो हतो. ते समये हे लोको ! आवती काले अष्टमी पर्व थशे, ते माटे तेने विषे आदर सहित यह धार्मिक क्रियाओ करवा तत्पर रहेशो, ए प्रकारे पडहनी उद्घोषणा बने कपटी स्त्रीओए सांभळी, तेथी अवसर जाणीने रंभा जाणे अजाणी होयने शुं ? एवं प्रगट करती आदर सहित राजाने भंभा वागवानुं कारण पूछवा लागी; तेथी राजा बोल्यो के है रंभा ! तुं सांभळ. अमोने पिताजीए कहेनुं छे के चतुर्दशी अष्टमी पर्वने विषे तथा अमावास्या पूर्णिमाने विषे तथा आसो मास तथा चैत्र मासनी आ बे अट्ठाइने विषे तथा त्रण चौमासी तथा वार्षिक पर्युषण पर्वने विषे इत्यादिक स पर्वों तथा ज्ञान-आराधन निमित्ते ज्ञानपंचमो कहेल: छे ते सर्व पर्वने विषे करेलं पुन्यकर्म स्वर्ग अने अपवर्ग सुखने आपवावाळं थाय छे. ते माटे ए पर्वो विषे समग्र व्यापारने छोडी शुभ कर्म करवा, पण ए पत्राने विषे स्नान, स्त्रीसंग, केश, जुगार, क्रिडा, परनु हास्य, मात्सर्य, ( इर्ष्या ) क्रोधादिक कषायसंग अने लेशमात्र प्रमाद पण करवा नहि, तथा प्रिय पदार्थ तथा मनुष्योने विषे पण ममता करवी नहि, तथा परमात्मानुं स्मरण करी शुभ ध्यानने धारण करवावाळं थनुं, तथा सामायिक, पौषध तेमज छट्ठ, अट्ठम प्रमुख तप करवो, तेज जिनेश्वरमहाराजनी पूजा करवी. ए प्रकारे पर्वनुं आराधन करनार प्राणी पुन्यने उपार्जन करे छे अने अनुक्रमे कर्मने क्षीण करी मुक्तिने पामे छे. ते कारण माटे हे स्त्रीओ ! सप्तमी तथा त्रयोदशीने दिवसे लोकोने प्रबोध भाषान्तरम् ॥ ३७ ॥

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