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भाषान्तरम्
पर्युषणाष्टान्हिका व्याख्यान
छे ॥१॥ पोरिसीना प्रत्याख्यान करवाथी एक हजार वर्षना पापकर्मने खपावे छे ॥२॥ साढपोरिसीना प्रत्याख्यान करवाथी दश हजार वर्षना पापकर्मने खपावे छे ॥३॥ पुरिमना प्रत्याख्यान करवाथी एक लक्ष वर्षना पापकर्मने खपावे छे ॥ ४॥ अचित्त जळ संबंधी एकासणाना प्रत्याख्यान करवावडे करी दश लक्ष वर्षतुं पापकर्म हणाइ जाय के ॥५॥ नीवीना प्रत्याख्यान करवाथी एक कोटी वर्षतुं पापकर्म क्षीण थाय छे ॥६॥ एकलठाणाना प्रत्याख्यान करवाथी दश कोटी वर्षनुं दुष्ट कर्म नाश पामे छे ॥ ७॥ एक दत्तीना प्रत्याख्यान करवाथी सो कोटी वर्षमुं पापकर्म दर थाय छे ॥८॥ आंबेल तपनुं प्रत्याख्यान करवाथी एक हजार कोटी वर्षनु पापकर्म नाश थाय के ॥९॥ उपवास तपर्नु प्रत्याख्यान करवाथो दश हजार कोटी वर्षनुं पापकर्म प्रशांत थाय छे ॥१०॥ छ? तपनुं प्रत्याख्यान करवाथी एक लक्ष कोटी वर्षनुं पापकर्म नाश थाय छे ॥ ११ ॥ अट्ठम तपनुं प्रत्याख्यान करवाथी दश लक्ष कोटी वर्षनं पापकर्म विनाशभावने पामे छे ॥ १२ ॥ स्यारवाद एक एक उपवासनी वृद्धि करवायी दशगुणो आंकडो वधारवो. अट्ठमर्नु तप करवाथी नागकेतु ते ज भवने विषे प्रत्यक्ष-प्रगट फलने पाम्यो एवी रीते सर्व तप शल्य रहितपणे करचो; कारण के शल्य सहित दुष्कर तप करवामां आवे तोपण निरर्थक छे. तेना उदाहरण सांभळो. अहींथी एंशीमी चोविशीने विषे कोइ एक राजाने घणा पुत्रो हता, परंतु एक पण पुत्री नहोती; तेथी सेंकडो उपायो करवाथी एक पुत्री थइ. हवे ते पुत्रीनो स्वयंवर मंडपने विषे वरेलो वर दुर्दवथकी चोरीने विषे मरण पाम्यो, तेथी सुशोला सतीओने विषे प्राप्त छे रेखा जेनी एवी सती श्रावकधर्मने विषे पूर्ण प्रीतिवाळी थइ काळ निर्गमन करवा लागी.
डा तीर्थकरमहाराज पासे दीक्षा अंगीकार करी दीक्षा पाळवा लागो. एकदा प्रस्तावे लक्ष्मणा साध्वीए |