Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia

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Page 26
________________ पर्युषणाष्टाह्निका भाषान्तरम् व्याख्यान ॥ २२॥ क्रोध उत्पन्न थवाथी राजाए सम्यक् प्रकारे तेनुं कारण कयु. एकदा प्रस्तावे पूजानिमित्ते दासीने वस्त्र लाववानु कहेवाथी दासी धोळां वस्त्र लावेल छतां तेने लाल देखी क्रोध करी दासीना कपाळमां आरिसो मारवाथी दासी मरण पामी. त्यारबाद तेज वस्त्र श्वेत देख्यां. ते दुनिमित्तवडे करी तथा मस्तकने नहि देखवाना दुनिमित्तवडे करी पोताना आयुष्यने अल्प जाणी, तथा व्रतनो भंग थयेलो जाणी संसारथकी विरक्त थइ राजाने कड्यु के मने दीक्षा लेवानी रजा आपो. त्यारे राजाए कयु के दीक्षा पाली देवलोकने विषे तुं जाय तो मने बोध करवा आवq. आ प्रमाणे राजाए कह्यु जेथी ते प्रमाणे राजार्नु वचन अंगीकार करी प्रतिमान पूजन करवा देवदत्ता नामनी कुब्जा दासीने भलामण करी उत्सव सहित दीक्षा लीधी, अने अनशन करी कालधर्म पामी सौधर्म देवलोके देवपणे उत्पन्न थइ. त्यारवाद देवताए प्रबोध कर्या छतां पण उदायन राजाए तापसोनी भक्ति करवी ज्यारे छोडी नहि, त्यारे देवताए विचार कर्यों के-अहो ! दृष्टिराग दःखे करीने नाश पामी शके छे. पछी | देवता तापसना रूपने धारण करी दिव्य अमृतफल लइने राजानी सभामां आव्यो, अने राजाए तेने नमस्कार || करी आसन उपर बेसार्यों. त्यारबाद तापसे अमृतफल राजाने आप्यु, तेने आस्वादन करवाथी आनंदित थइ राजा | बोल्यो के-आपना जेवा परमगुरु विना सुगंधि अने सुस्वादु फळने बीजो कोण चखाडनार हतो? अर्थात् कोइ ज नहि. त्यारबाद तापसे कयु के-हे राजन् ! हवेथी अमो निरंतर तमोने आवा फळना आस्वादने लेवरावशें, कारण के अमारा आश्रममा आवा हजारो वृक्षो अने फळो छे. ते सांभळी राजा बोल्यो के-मने देखाडो, तेथी तापसरूपने धारण करनार देवता शक्तिवडे राजाने एकाकीपणे दूर लइ गयो. त्यां दूर थकी आश्रमनां वृक्षोने ॥ २२॥

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