Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia
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पयुषणा
ष्टाह्निका व्याख्यान
॥ २३ ॥
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सुगंधीवाळा अने मनोहर फळोथी देदीप्यमान देखी राजाए विचार कर्यो के अहो ! अमारो जन्म सफल थयो. आ जन्मपर्यंत आराधन करेला तापस गुरुओ मने आवी रीते उपकार करवा लायक थया, ए प्रकारनो जेटलामां विचार करे छे, तेटलामा देवताए विकुर्वणा करेला मायावी तापसो लाकडीओ लइ चोतरफथी छुट्या, अने मारो रे ! मारो ! आवी रीते बोली राजाने मारवा मांड्यो; तेथी राजा पण भयभ्रांत थइ जीव लइ काकनाशनी पेठे नासवा लाग्यो अने नासतां नासतां देवताए विकुर्वणा करेला साधुओना स्थान प्रत्ये जइने कहेवा लाग्यो केमन सहाय थाओ, महारुं रक्षण करो. तेवा वाक्यने श्रवण करी साधुओए राजाने कधुं के तुं भय पामीश नहि, अमारा पासे तने इंद्र महाराजा सरिखानो पण भय थवानो नथी. आवी रीते कहेवाथी राजा शांति पाम्यो. ते अवसरे साधुओए राजाने धर्मनो उपदेश करवाथी राजाए तापसनी भक्ति छोडी जैनधर्म अंगीकार कर्यो. त्यारबाद देवताए प्रगट थइ पोतानी ऋद्धि देखाडी आहेत् धर्ममां स्थिर करी, विषम अवस्थाने लीधे महा स्मरण करजे, एम कही वचन: आपो स्वर्गलोक प्रत्ये गमन कर्यु. हवे ते समयने विषे गांधार नामनो श्रावक सर्व जग्याए तीर्थयात्रा, चैत्यवंदनादिकनी क्रियाने करतो थको घणा उपवास करवाथी तुष्ठमान थयेली देवीए ताढ्य पर्वत विषे देवताओने वंदन करावी, मनोकामना सिद्ध थाय तेवी एकसो ने आठ (१०८) गुटिका (गोळीओ) आपी. ते गोळीयोमांथी एक मुखने विषे नाखी हूं वीतभयपत्तन प्रत्ये जाउँ, ए प्रकारनुं ध्यान धरवाथी तुरत त्यां गयो त्वां तेने कुब्जा दासीए जीवितस्वामीनी मूर्तिनां दर्शन कराव्यां, अने वंदन कर्या पछी मांदगी प्राप्त वीथी कुब्जा दासीए गांधार श्रावकनी सारखार करी. ते समये पोतानुं आयुष्य अल्प जाणोने
भाषान्तरम्
।। २३ ।।

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