Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia

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Page 14
________________ भाषान्तरम् पर्युषणा भावार्थ:-परम कृपाना सागर एवा श्रीमान् जिनेश्वरमहाराजे अट्ठाइ छ कहेली छे, तेना स्वरूपने श्रवण करी ष्टान्हिका INभव्यजीवोए विधिपूर्वक तेनु सेवन करवू. व्याख्यान हवे ते छ अट्ठाइना नामोनुं स्वरूप आ प्रकारे छे. एक चैत्र मास संबंधी अट्ठाइ १। बीजी अषाढ मास संबंधी अट्ठाइ २। त्रीजी पर्युषण संबंधी अट्ठाइ ३। चोथी आसो मास संबंधी अट्ठाइ ४। पांचमी कार्तिक मास संबंधी अट्ठाइ ५। छट्ठी फागण मास संबंधी अट्ठाइ ६। ए प्रकारे छ अष्टाहिकाने अशाश्वती कहेल छे, जे माटे का छे के: उक्तं च" तह चउमासिअतिगं, पजोसवणा य तह य इअ इक्कं । जिण-धम्म-दिक्ख-कैवल,-निव्वाणासु असासइआ ॥१॥" भावार्थः-चौमासी त्रण, तथा पर्युषणा, तथा जिनेश्वर महाराजना जन्म, दीक्षा, केवल तथा निर्वाण; इत्यादिक कल्याणको वगेरेने अशाश्वता कहेल छे. जीवाभिगमसुत्रे त्वेवमुक्तम्जीवाभिगमसूत्रने विषे तो ए प्रमाणे का छे के, ते नंदीश्वरद्वीपने विषे घणा भवनपति देवो, तथा व्यंतर

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