Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia

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Page 13
________________ भाषान्तरम् पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान ॥९॥ “ दो सासयजत्ताओ, तत्थेगा होइ चित्तमासंमि । अट्टाहिआइमहिमा, बीआ पुण अस्सिणे मासे ॥१॥ एआओ दोवि सासय,-जत्ताओ करंति सव्वदेवावि । नंदीसरंमि खयरा, नरा य निअएसु ठाणेसु ॥ २ ॥" जुयलं ॥ भावार्थ:-चे शाश्वती यात्रा कहेली छे, तेमां एक चैत्र मासने विषे तथा बीजी आसो मासने विषे ॥१॥ आ बने शाश्वती यात्राओ, सर्व देवताओ ते नंदीश्वरादि तीर्थने विषे जइने पूजा महोत्सव वगेरे करे छे तथा विद्याधरो तथा मनुष्यो पण पोताना स्थान प्रत्ये रही महोत्सवादिकने करे छे ॥२॥ ए प्रकारे बे शाश्वती अष्टालिका तथा चार बीजी मली छ अष्टाह्निका कहेली छे. हवे शास्त्रकारमहाराजा छ अष्टाहिकाना स्वरूपने कथन करे छे. यतः" अष्टाह्निकाः षडेवोक्ताः, कृपावद्भिर्जिनोत्तमैः । तत् स्वरूपं समाकएर्य, सा सेव्या विधिपूर्वकैः ॥१॥" ॥ ९ ॥

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