Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia
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भाषान्तरम्
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान
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अनुसारे त्याग करवा. वळी पोताना कुटुंबादिकना निर्वाह करवा माटे ते आरंभादिक कर्या विना चाली शके तेवू नहि होवाथी गृहस्थीोने पर्व दिवसोने विषे पण केटलोक आरंभ होय छे, परंतु सचित्त आहारनो त्याग करवामां स्वातंत्र्यपणुं होवाथी पर्वने दिवसे सचित्तनो अवश्य परिहार करवो. कदाच गाढ मांदगीना प्रसंगने विषे
औषधादिकना कारणांतरने लइने समग्र सचित्तनो त्याग करवानी शक्ति न होय तो नामग्रहणपूर्वक एकाद अमुक | वस्तुनी छूटी राखी बाकी सर्व सचित्तादिकनो परिहार करवो; तथा आसो मास अने चैत्र मासनी अट्ठाइ आदि पर्व दिवसोने विष पूर्वोक्त विधि विशेष करवो. जे माटे का छे के:
॥८
॥
" संवच्छरचाउम्मासिएसु, अट्टाहिआसु तिहीसु ।
सव्वायरेण लग्गइ, जिणवरपूआतवगुणेसु ॥१॥" भावार्थ:-संवत्सरीने विषे तथा चातुर्मासने विषे तथा अट्ठाइ आदि तिथियोने विषे, भव्यजीवो जे ते सर्व आदरवडे करी जिनेश्वर महाराजनी पूजा तथा तप, गुण, दान, मानादिकने विशेष प्रकारे करवा लागे.
वली सर्व अट्ठाइयोने विषे चैत्र मासनी अट्ठाइ तथा आसो मासनो अट्ठाइ, आ बे अष्टाह्निका शाश्वती छे. ते बे अट्ठाइने विषे वैमानिक देवो पण नंदीश्वरद्वीपने विषे जइ तीर्थयात्रादिक पूजा महोत्सवादि करे छे. जे माटे का छे के:
॥८॥

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