Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia
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भाषान्तरम्
पयुषणा-I ष्टान्हिका व्याख्यान
पव्वे न भुत्तुं सचियं सुचित्तं, भवाण्णवं गोयम ! ते तरंति ॥१॥" भावार्थ:-श्रीमान् वीतराग महाराजे कथन करेला निर्मल जैनशासनने विषे शासनोन्नति करवा माटे तत्पर रहेला जे भव्यजीवो मन, वचन, कायाना योगने एकत्र करी एकाग्रचित्तथी परमात्मानो पूजाने करनारा छे, तथा प्रभावनादि कर्तव्यने विषे तत्पर रही जैनशासननी उन्नति करनारा छे, तथा पर्वने दिवसे आहारादिकनो त्याग करनारा छे, तेम सचित्त आहारादिकनो पण त्याग करनारा छे, ते जीवो हे गौतम ! भवसमुद्रना पारने पामे छे ए प्रकारे श्रीमान् महावीर भगवंते गौतमस्वामी महाराजने कहेलुं छे.
आवा प्रकारना वचनोथी निरंतर मुख्य वृत्तिथी श्रावक लोकोए सचित्त आहारनो परिहार करवो. कदाचित तेम करवानी शक्ति न होय तो पर्वने दिवसे तो सचित्त आहारनो जरुराजरुर त्याग करवो. वली पण पर्वना दिवसे स्नान करवू नहि, तथा मस्तक शोधन करावq अने गुंथावq नहि, तथा वस्त्रादिकने धोवा नहि तेमज वस्त्रोने रंगाववां नहि, तथा गाडा तथा हलने खेडवां नहि तेमज मूढकादिकने बांधवा नहि, तथा यंत्रादि जेमके I कोलं, चरखा, मिल प्रमुख चलाववां नहि, वाहनादिकने वहन करवा नहि, दलवू, भरडवू, खांडवु नहि, तेमज चूरवु नहि, तथा पत्र, पुष्प, फलादिकने तोडवां नहि, सचित्त खडी. हमजीका (वर्णिका) तथा माटी इत्यादिकनुं मर्दन करवू नहीं, धान्य, क्षेत्र लणवा वगेरे जq नहि, तेमज गृह तथा दुकानादिकने लिंपवां नहि, तथा माटी वगेरे खोदवी नहि, तथा गृहादिक नीपजाववानो आरंभ करवो नहि वगेरे समग्र आरंभोने पोतानी शक्ति
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