Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia
View full book text
________________
पर्युषणा
ष्टाह्निका व्याख्यान
॥१३॥
एक बाजु सर्वे धर्मोंने स्थापन करी अने बीजी बाजु साधर्मिक भाइओनी भक्तिने स्थापन करी जो तुलना करे
भाषान्तरम् (तोले) तो बन्ने पल्ला तुल्य थाय, अर्थात् एक माणस सर्वे धर्मोनुं आराधन करे अने बीजो साधर्मिक भाइओनी भक्ति करे तो बन्ने सरिखा लाभने पामे छे; माटे विशेष प्रकारे साधर्मिक भाइओनी भक्ति करवी.
साधर्मिक भाइओनो भक्ति आ प्रकारे करवी-दरेक माणसोए पोताना पुत्रना जन्मने विषे, तथा विवाहादिकने | विषे तेमज बीजा पण सांसारिक कर्तव्योने विषे साधर्मिक भाइओने निमंत्रणा करी उत्तम प्रकारना भक्ष भोजनखानपान करावी, विशिष्ट प्रकारे तांबुलादिक आपी तथा वस्त्राभूषण दानमान वगेरे आपी, आपत्तिने विषे मग्न थयेलाने पोताना घरना धननो व्यय करीने पण तेमनो उद्धार करवो; अने अंतरायकमना उदयथकी वैभवनो क्षय थयो होय तेवा साधर्मिक भाइओने मोटा मने करी घणी लक्ष्मी आपी पूर्वनी हदे (प्रथम जेवी स्थिति होय तेवी स्थितिए) पहोंचाडी तेमनी समृद्धिवाळा करवा, ते ज श्रावकोर्नु परम भूषण छे. वळी जे पोताना साधर्मिक भाइओने विविध प्रकारनी लक्ष्मीयुक्त करता नथी तेश्रोनुं धनाढ्यपणुं शा कामर्नु छ ? अर्थात् काइज कामर्नु नथी. जे माटे का छे के:
उक्तं च"न कयं दीणुद्धरणं, न कसं साहम्मिआण वच्छल्लं । हिअयमि वीयरायो, न धारिओ हारिओ जम्मो ॥ १॥" Al॥ १३ ॥

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72