Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia

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Page 6
________________ पर्युषणा भाषान्तरम् टातिका व्याख्यान ॥ २॥ भावार्थ:-हे भव्यजीवो ! भवसमुद्रना पारने प्राप्त करावनार श्रीमान् वीतरागमहाराजे कथन करेला धर्मर्नु तमे आराधन करो. जे धर्मना आराधन करवाथी देवो वशवर्ती थाय छे तथा अष्ट महासिद्धि तथा नव निधि पण प्राप्त थाय छे तथा कामधेनु (देवगाय) तथा कल्पवृक्ष अने चिंतामणिरत्न पण घरमां स्थायी भावने पामे छे. | वली पण सारा सारा इच्छित फलोने आपवामां निपुणभावने पामेला उत्तम धर्मनुं तमे आराधन करो. यदुक्तम् पुनरपि" जयसिरिवंछियसुहए, अनिट्ठहरणे तिवग्गसारम्मि । आलोगपरहिअत्थे, सम्मं धम्ममि उज्जमह ॥ २ ॥” । भावार्थ:-हे महानुभावो! जयश्रीने आपनार अने मनोवांछित सुखने प्राप्त करावनार, तथा अनिष्ट पापादिकने हरण करनार अने त्रिवर्ग (धर्म अर्थ अने काम) आ त्रणेने विषे सारभूत एवा धर्मने विषे सम्यक् उद्यमवाला थाओ. फरी पण का छे के “ त्रिवर्गसंसाधनमंतरेण, पशोरिवायुर्विफलं नरस्य । तत्रापि धर्म प्रवरं वदन्ति, न तं विना यद् भवतोऽर्थकामौ ॥१॥"

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