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जगमत्थयत्थियाणं-जगतना मस्तक उपर रहेलाओने.
वियसियवरनाणदंसणधराणं-विकसित उत्तम ज्ञान तथा दर्शनने धारण करनाराने.
नाणुज्झोयगराणं-ज्ञाननो प्रकाश करवावाळाने... लोगमि नमो जिणवराणं लोकोमां, जिनवरोने नमस्कार हो..
भावार्थ-जगतना मस्तक उपर रहेला ताज जेवा तथा उज्जवळ अने श्रेष्ठ ज्ञान तथा दर्शनने धारण करनारा, लोकोमा ज्ञानरूपी तेजने प्रकाशकरनारा श्री जिनेश्वर परमात्माने नमस्कार थाओ ॥२॥ मु०-तित्थयरे भगवंते, अणुत्तरपरक्कमे अमियनाणी । तिन्ने सुगइगइगए, सिद्धिप्पहदेसए वंदे ॥३॥
. . शब्दार्थ:तित्थयरे-तीर्थंकरो गइ-गति भगवंते- भगवंतोने
गए-गयेला . अणुत्तर-अत्यंत श्रेष्ठ
सिद्धि-मोक्षमो परकमे-पराक्रमी
प्पह-मार्ग अमिय-माप न थइ शके
देसए - देखाडनारा, उपदेश. नाणी-ज्ञानवाला
देनारा तिन्ने-तरेला
वंदे-वंदन करूं छु सुगइ-उत्तमगति
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