Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas

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Page 392
________________ शब्दार्थ:इक्खाग-हे इक्ष्वाकु- विदेह-विदेहना नरवसहा-मनुष्योमा. . कुलवंश्य मुणिवसहा-मुनिनव-नवीन . ओमां श्रेष्ठ सारय-शरद् ऋतुना ससि-चंद्र सकलाणण-कलायुक्त विगयतमा-अज्ञानविहुअरया-कर्मरूप. मुखवाळा - रहित : ... रजरहित अजि-हे अजित उत्तम-उत्तम तेअ-तेजवाळा गुणेहि-गुणोवडे महा-मोटा मुणि-मुनिवडे . अमिअ-माप वगरना बला-बळवाळा पणमामि-नमस्कार . ते-तमोने ... भव-संसारना करूं छं. भय-भयने मूरण-तोडनारा जग-जगतना सरणा-शरण मम-म्हारा सरणं-शरण भावार्थ:-हे इक्ष्वाकु वंशमां जन्मेला ! हे विदेह देशना राजा! हे मनुष्योमा प्रधान ! हे मुनिओमां श्रेष्ठ ! हे शरद् ऋतुना पूर्ण चंद्र जेवा मनोहर मुखवाळा ! हे तमोगुण-अज्ञान अने कर्मरज रहित ! हे तेजस्वी गुणोबडे अथवा तेज अने गुणोवडे उत्तम ! अथवा गुणोवडे हे उत्तम तेजवाळा ! हे महामुनिओथी पण जाणी न शकाय तेवा सामर्थ्यवाळा ! हे विशाळ कुळवाळा! हे संसारना भयनो नाश करनार ! एवा हे अजितनाथ ! हुं तमने प्रणाम करुं छं. केमके तमे जगतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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