Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas

Previous | Next

Page 396
________________ ३७४ भावार्थ- वळी ते प्रभु सदा आत्मबळमां कोइथी जीताया नथी, शरीरना बळमां जीताया नथी, अने तप तथा संयममां पण जीताया नथी. ए प्रकारे हुं अजितनाथ जिनने स्तवुं कुं. १६. श्रीशांतिनाथनी स्तुति. तं नवसरयससी, X सोमगुणेहिं पावइ न * संयम सत्तर प्रकारे छे ते आ प्रमाणे पांच इन्द्रिय अने चार कषायनो जय, पांच अवतनो त्याग अने त्रण योग ( मन, वचन, काया) नुं निवर्तन. संयमना १७ प्रकार बीजी रीते पण छे ते आ प्रमाणे:१ पृथ्वीकाय संयम, २ अपूकाय संयम, ३ तेउकोय संयम, ४ वाउकाय संयम, ५ वनस्पतिकाय संयम, ६ बे इंद्रिय संयम, ७ तेइंद्रिय संयम, ८ चौरिंद्रिय संयम, ९ पंचेंद्रिय संयम, १० प्रेक्ष्य ( जोवुं ) संयम, ११ उपेक्ष्य (उपेक्षा करवी ) संयम, १२ प्रमार्जना संयम, १३ अपहृत्य ( परठववुं ) संयम, १४ मन संयम, १५ नचन संयम, १६ काय संयम अने १७ अजीव ( उपकरण ) संयम. N x चंद्र, सूर्य, इंद्र अने मेरुपर्वत पोताना सौम्यता, तेज, रूप अने स्थैर्य गुणवडे करीने भगवंतना सौम्यता आदिगुणनी समानता प्राप्त करी शकता नथी एटले के भगवंतना गुणो अधिकतर छे. : अह तत् शब्दे पूर्वोक अजितनाथ लीधा छे. परंतु हवे पछी शांतिनाथ कहेवा एम वृद्धो कहे छे. केमके अजितनाथनी स्तुति आवाज गुणोबडे प्रथम कराइ गइ छे तेमज तत् शब्दनो अर्थ वक्ष्यमाण पण करी शकाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455