Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas

View full book text
Previous | Next

Page 402
________________ ३८० हुलिअं-शीघ्रपणे | चल-चंचल एवा आगया-आवेला कुंडलंगयतिरीड-कुंडळ, अंगद ससंभमोअरण-संभ्रम सहित -बाजुबंध, किरीट-मुगट _एटले उतावळे उतरवाथी सोहंतमउलिमाला-शोभती मुखुभिअ-क्षोभ पामे छते कुटनी माळाओ छे जेमनी लुलिय-डोलता एवा, भावार्थ-आ चार श्लोकोवड़े भगवानने देवादिक वंदन करवा आवे छे ते केवी रीते ? विगेरे बतावीने पछी आचार्य वंदना करी छे ते आ प्रमाणे-देवो तथा असुरो श्रेष्ठ विमान, मनोहर सुवर्णना रथ अने अश्वना समूह लइने शीघ्रपणे आवे छे, ते वखते उतावळथी उतरतां क्षोभ पामीने डोलता अने चंचळ कुंडळ, बाजुबंध, मुगट अने शोभती मुगटनी माळाओथी तेओ देदीप्यमान देखाय छे. २२. नं सुरसंघा सासुरसंघा वेरविउत्ता भत्तिसुजुत्ता, आयरभूसिअसंभमपिंडिअसुटुसुविझिअसव्वबलोधा । उत्तमकंचणरयणपरूवियभासुरभूसणमासुरिअंगा, गायसमोणयमत्तिवसागयपंजलिपेसिअसीसपणामा ॥२३॥ (रयणमाला) शब्दार्थ: ज-जे सुरसंघा-देवोना समूह सासुरसंघा-असुरना समूह स हित एवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455