Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas

Previous | Next

Page 412
________________ छते नोहर शब्दथी मिश्र करे । तयं-ते . तिलोयसव्वसत्तसंतिकारय, देवनट्टिआहि-देवनी नर्तकीओ त्रण जगतना सर्व प्राणीहावमावविभमप्पगारएहिं ओने शांत करनारा अथवा हाव, भाव अने विलासना मोक्षने आपनारा . प्रकारवाळा . नचिऊण-नृत्य करीने पसंतसव्वपावदोसं-विशेषशांत थया छे सर्व पाप-कर्म अने अंगहारएहिं - अंगना विक्षेपे - द्वेष विगेरे जेना एवा करीने एस हं-आ हुं वंदिआ य-जेना बे चरणोने नमामि नमस्कार करुं छं संति-शांतिनाथ बस्स-जे भगवानना ते मुविकमा कमा-ते उत्तम प उत्तम-उत्तम राक्रमवाळा बे चरणोने जिणं-जिनेश्वरने भावार्थ-आ बे छंदमां देवीओए नृत्य पूर्वक श्रीशांतिनाथने वंदना करी छे, तेनुं वर्णन आपलं छे.-जे प्रभु प्रथम ऋषिओ अने देवोना समुदाय वडे स्तुति तथा वंदन कराया छे, अने पछी देवांगनाओए सावधानपणे नमस्कार करेला छे, जेनी शक्ति आखा जगतने मुक्ति पमाडे तेवी ले अने जेनुं शासन सर्वोत्तम छे, तथा जेनाश्रेष्ठ पराक्रमवाळा बे चरणोने भकिना वशथी आवीने एकत्र थयेली, नर्तक वादक देवो तथा देवीओथी थुक थयेली अने देवोनी साथे रतिक्रीडा करवामां कुशळ एवी देवनी वांथा छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455