Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas

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Page 414
________________ ३९२ सहावलहा समप्पइटा, अदोसदुहा गुणेहि जिहा पसायसिहा तवेण पुढा, सिरीहिंइटा रिसीहिं जुटा ॥३३॥ वाणवासिआ ॥ ते तवेण धुअसव्वपावया, सव्वलोअहिअमूलपावया । संथुआ अजिअसंतिपायया,इंतु मे सिवसुहाण दायया॥३४॥ ॥ अपरांतिका ॥ शब्दार्थछत्त-छत्र जव-जववडे चामर-चामर मंडिआ-शोभित पडाग-पताका झयवर-श्रेष्ठ ध्वज जूअ-यज्ञस्तंभ मगर-मघर १ असमप्रतिष्टाः निरुपम छे प्रतिष्ठा (ख्याति) जेमनी एवा. २ रताश तथा कोमळता आदि अथवा ज्ञान दर्शन चारित्रादि गुणो. ३ प्रसातशिष्ठाः एटले उत्कृष्ट सुखवाळा श्रेष्ठ पुरुषो छे जेनी समीपे एवा. ४ शंस्तुता सुखना कारणभूत स्तवन कयु छ जेनुं एवा. ५ शिव सुखना दातार एवा अजितनाथ अने शांतिनाथ पूज्य मने स्तुति करायेला थामओ, अर्थात् तेमनुं नित्य दर्शन थाओ एम पण अर्थ लइ शकाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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