Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas

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Page 446
________________ ४२४ भवपार रे ॥ जिन० ॥ ५ ॥ सूरिः सागरचन्द्र, शिष्य वृद्धिचन्द्र, नमे प्रसुने वारंवार रे ॥ ६ ॥ जिन० कृपानिधि० ॥७॥ ७८ श्री पार्श्वनाथ मंत्र गर्भित स्तवन (देशी - चालती अने त्रुटकनी ) सकल सदा फल चिंतामणी समो, नवरंग नारंग पास भविक नमो . ॐ नमो भावे पास ध्यावे नाथ श्री श्री भगवती, धरणेंद्र पद्मावतीय माया बीजराया संजुती; अद्वेय मट्टे क्षुद्र विघट्टे क्षुद्रान्थमय थंभया, वाजंती भुंगल दूरि मयगल चूरि अष्ट महाभय ।। १ ।। आशा पूरे पास पंचासरो, श्री वरकाणो पास संखेश्वरो. संखेश्वरो श्री पास थंभण, गोडी मंडण नाहलो, नवखंड श्री कलि कुंड, इण जग जागतो जीराउलो; जागतो तीरथ हरे, अनरथ पास समरथ तुं धणी, हवे चडो व्हारे विघ्नभयहर, सारकर तिहुअण तणी ॥ २ ॥ कुरु कुरु वंछित नवनिधि संपदा, स्वाहा पदस्युं टाले आपदा आपदा टाले राजपाले, पास त्रिभुवन राजीओ, कलिकाल मांहि पास नामे, मंत्र महिमा गाजीओ, दारिद्र चूरे आस पूरे पास तुं जगदीश ए, चरण प्रमोद तसु शिष्य जंपे, पूरइ संघ जगीस ए ॥ ३ ॥ ७९ श्री पार्श्वनाथ ( २१ नाम गर्भित ) स्तवन. ( आतो लाखेणी आंगी कहेवाय - ए राग ) प्रभु पार्श्व ते प्रेमे नमाय शोभे जिनवरजी; भक्तिभावे ते भावना भवाय, शोमे जिनवरजो; पूजा आंगी ते सुंदर रचाय, शोमे जिनवरजी; टेक० (आंतरी) प्रभु चमत्कारे बहु नाम स्थपाय; भवि भयो स्थंभि, पार्श्व Jain Education International For Private & Personal Use Only • www.jainelibrary.org

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