Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas

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Page 444
________________ ७३ ॥ अथ मुट्ठिसहियं गट्ठसहियंर्नु पच्चक्खाण ॥ मुठिसहियं गंठिसहियं पच्चक्खामि, चउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहस्सागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ ॥ ॥ ७४ अथ देशावगाशिक पच्चक्खाण ॥ अहन्नभंते तुम्हाणं समिवे देसावगासियं पच्चवखामि तं जहा दव्वओ खितओ कालओ भावओ दव्दओणं देशावगासियं खित्तओणं इत्थं वा अन्नत्थं वा कालोणं महत्तपरिमाणं जाव धारणापमाणं पाजुदासामि भाव ओणं जावगहेणं नगहि जामि जावलेणं नलिज्जामि अन्नेण केण रोगायकेण वा, परिणामो न परिवडइ ताव मे अभिग्गहो अन्नत्थणाभोगेणं सहस्सागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ ॥ इति । ७५॥ श्री आदि-अजित-श्रीशांतिनो स्तवनः।। आदि अजित श्रीशांतिनो, दीठो दरिसण आज ॥जाणिक जयवंता मिल्या, सीधां सवि काज ॥ १॥ त्रिजगजीवन जिन भेटिये, थयो हरख अपार ॥ ए संसार असारनो, लाधो एहिज सार । त्रि०॥२॥ वंश इख्यागे राजीयो, नृप नाभिमल्हार ॥ माता मरूदेवा रे, धन धन अवतार ॥ त्रि० ॥ ३ ॥ अढार सहस सीलंगरथे, सोहे धोरी धीर ।। वृषभलंछन तिहां आवियो, समरथ गंभीर ॥ त्रि० ॥ ४ ॥ जितशत्रु विजया कुलतिलो, स्वामि अजिअ जिणंद ॥ सौम्यकला ससियर जिसो, दीपे तेजे दिणिंद ॥ त्रि० ॥ ५ ॥ गयलंछण धनु च्यारसे, साढा देह प्रमाण ॥ तसु दिन दिन दीपे कला, माने जे जग आण ॥ त्रि०॥६॥ तीर्थकर जग सोलमो, मृगलंकन एह ॥ त्रीस अधिक दश धनुषनो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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