Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas

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Page 452
________________ ८५ आचार्यदेव श्री सागरचंद्रसूरीश्वरजीनी स्तुति (आतो लाखेणी आंगी कहेवाय, शोभे जीनवरजी-ए राग ) आ तो आचार्य देव कहेवाय, शोभे सूरीश्वरजी; शुद्ध संयमथी कर्मों दलाय, शोभे सूरीश्वरजी, महीयले विचरी भव्यो तराय, शोभे सूरीश्वरजी. टेक (आंतरो)-भाव शत्रुओ दळवा तत्पर रहे, द्रव्य शत्रओ देखीने वैराग्य वहे; जाणे सूर्योमां सूरि सोहाय, शोभे सूरीश्वरजी. १ (आंतरो)-जिनवाणी वडे मवि भवो दहे, . शुद्ध समकित दइ शुभ मार्गे वहे; जाणे ज्ञानमां गुरु मलकाय, शोभे सूरीश्वरजी. २ (आंतरो)-गुरु वाणी सुधा नित्य मवि ग्रहे, जंगम कल्प जाणी गुरु सेवा वहे; ए तो निरमल नयणे निरखाय, शोभे सूरीश्वरजी. ३ (आंतरो)-गुरु भक्तिना उत्तम जे कार्यो करे, नित्य शुद्ध भावे शुभ गति वहे; ए तो पुन्य दीपक प्रगटाय, शोभे सूरीश्वरजी. ४ - (आंतरो)-भूरि सागरचन्द्रजी गुरु अनोपम, वृद्धि वंदन स्वीकारो आजे शुभोपम; भवि कुमुदो सहे. जे विकसाय, शोभे सूरीश्वरजी. ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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