Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas
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४०२
पाणिवह पेमकीला पसंग हासा य जस्स ए दोसा। अहारसवि पणठा, नमामि देवाहिदेवं तं ॥५॥ [ आ बे गाथानो अर्थ पाछळ चैत्यवंदनमां आव्यो छे.
तेथी त्यां जोइ लेवो.] पछी खमासमण दइ इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् , दुक्खक्खय कम्मक्खय कही, अन्नत्थ, कही, बारलोगस्सनो काउस्सग्ग करी; पारी पछी प्रगट लोगस्स कही; पछी सामायिक पारवानी विधी करवी.
॥ इति पक्खि प्रतिक्रमण ॥
॥४८ अथ श्री चोमासी प्रतिक्रमण विधि ॥
चोमासी प्रतिक्रमणनी पण एज विधि जाणवी, पण एटली विशेषता के, पख्खिना स्थानके (ठेकाणे) चोमासीनो पाठ कहेवो; तथा बार लोगस्सना ठेकाणे वीस लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. तथा तपने ठेकाणे छठेणं, बे उपवास, चार आंबिल, छ निवी, आठ एकासणा, चार हजार सज्झाय; ए रीते कहेवु. (इति)
॥ ४९ अथ श्री सांवच्छरिक प्रतिक्रमण विधि ।।
आ पण उपर लखेली विधि प्रमाणे छे पण पक्खिना ठेकाणे संवच्छरीना आगार कहेवा. (बोलवा) तथा बार लोगस्सना काउसम्गने ठेकाणे चालीस लोगस्स, अथवा एकसोने साठ नवकारनो काउसग्ग करवो 'अने तपने ठेकाणे संवच्छरीतप अमेणं, त्रण उपवास, छ आंबिल, नव निवि, बार एकासणा अने छ हजार सज्झाय, ए रीते कहेवू.
॥ इति सांवत्सरिक प्रतिक्रमण विधि ॥
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