Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas
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૪૦૨
पछी जंकिंचि० नमोत्थुणं० कही खमासमण दइ, इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् चारित्राचार विसोधनार्थ करेमि काउस्सग्गं. अन्नत्थ० बे लोगस्सनो काउस्सग्ग, पछी प्रगट लोगस्ल कही; सव्वलोप अरिहंत चेइआणं करेमि काउसग्गं, वंदण वत्तिआए० एक लोगस्सनो काउस्सग्ग पारी, पुख्खरवरदीवढ्ढे - कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो, पछी सिद्धाणं बुद्धाणं कही निचा बेसी नमोत्थुणं जावति० जावंत कही, खमासमण दह, स्तवनं संदिसापमि, बीजे खमासणे स्तवनं भणेमि, एक नवकार गणी, श्री समेतसिखरनुं स्तवन कही, जयवीयराय जगगुरु० कद्देवा ॥
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॥ इति देववंदन विधि ॥
पुर्णपोरसी समय थाय त्यारे उग्घाडापोरसी भणाववी. तेहनी विधि. खमासमण दह इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् उघाडापोरसी, बोजे खमासणे इरियावदि पडिक्कमि एक लोगस्सनो काउस्सग्ग पारी प्रगट लोगस्स कही खमासमण दइ इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् उग्धाडपोरसी मुहपत्ति पडिलेहुं ? एम कद्दी मुहपत्ति पडिलेहिने, जे पोषहमां भाजन वपराय ते पण पडिलेहवां, पाणी लाववा माटे ॥ इति ॥
पछी बोरे विधिथी देव वांदवा तेमां आयंबिल के एकासणु कर्या पछी चैत्यवंदन जगचिंतामणिथी जयवीयराय सुधी - करवुं.
|| ५७ अथ पच्चक्खाण पारवानी विधि ॥
समासमण दइ इच्छाका० इरियावहि पडिक्कमि एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करो प्रगट लोगस्स कही खमासमण दइ इच्छाकारेण० चैत्यवंदन करूँ ? सिरि रिसहनुं० चैत्यवंदन
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