Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas

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Page 432
________________ करी जंकिंचि० नमोत्थुणं० जावंति० जावंत० बे खमासमण दइ स्तवननो आदेश मागी नवकार० उवसग्गहरं० जयवीयराय० पछी खमासमण दइ इच्छाका पच्चख्खाण पारवा मुहपत्ति पडिलेहुं ? मुहपत्ति पडिलेहिने पछी खमासमण दइ इच्छाका० पच्चख्खाण पारूं ? खमासमण दइ इच्छाका० पञ्चख्खाण पुरु. नवकार गणी उपवास कोधो तिविहार पोरसी, साढपोरसी,., पुरमद, अवट्ठ पञ्चख्खाण कर्यु चोविहार. . ॥५८ पच्चक्खाण पारवानीगाथा ॥ फासियं पालियं चेव सोहियं तिरियं तहा । किट्टियं आहाराहियं चेव, विसोहिज्ज जयंजइ॥१॥ अर्थः-पच्चख्खाण फरस्युं, पायु, शोध्यु, पूर्ण कयु, प्रशंस्यु भने आराध्यु. आ प्रमाणे यतनावान मुनि पच्चख्खाणने विशेष शुद्ध करे. - योग्य समये पच्चख्खाण पूर्ण थाय ते फरस्युं कहेवाय, वारंवार तेने संभाळवू ते पाळ्यूं कहेवाय, पञ्चख्खाण पाळती वखते लावेलो आहार गुरुने आप्या पछी वधे ते आहार करवो ते शोध्यु कहेवाय, पच्चरूखाणनो काळ पूर्ण थया पछी थोडी वार रहीने पार ते तीर्यु कहेवाय, पच्चख्खाण पाळीने आहार करती वखते " में अमूक पच्चख्खाण कयु हतुं पूर्ण थयु ' एम कहेवू ते कीयु कहेवाय, जे प्रतिज्ञाए. पञ्चख्खाण ली, होय ते प्रतिज्ञाए पारे ते आराध्यु कहेवाय. आ छप्रकारे पच्चख्खाण विशुद्ध करीने यतनावान् मुनि पोताना आत्माने मोक्षमामी करे. १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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