Book Title: Panch Pratikramana Sarth
Author(s): Gokaldas Mangaldas Shah
Publisher: Shah Gokaldas Mangaldas

View full book text
Previous | Next

Page 422
________________ ४०० शब्दार्थववगय-नाश पाम्या छे पुणव्भवाणं-पुनर्भव कलि-क्लेष नमोत्थु-नमस्कार थाओ कलुसाणं-मलीनता ... देवाहिदेवाणं-देवाधिदेवने निदत-अत्यंत भावार्थ-नाश पाम्यां छे क्लेश अने मलीनता जेनां एवा, निर्मळपणे नाश पाम्यां छे राग द्वेष जेना एका, गया छे पुनर्जन्म जेनां एवा, ते देवाधिदेवोने नमस्कार हो. ४१ सव्वं पसमइ पावं, पुर्ण वडइ नमसमाणस्स । संपुणचंदवयणे, कित्तयणे अजिअसंतिनाहस्स ॥ ४२ ॥ सव्वं-सर्व नारना पसमइ-शान्त थाय छे संपुण-संपूर्ण पावं-पाप चंदवयणे-चंद्र जेवा मुखवाळा कित्तयणे-कीर्तन वढ्इ-वधे छे अजिअ-संति-नाहस्स-अजित नमंसमाणस्स-नमस्कार कर- ] -शांति-नाथर्नु भावार्थ-संपूर्ण चंद्रना जेवा मुखवाळा अजितनाथ अने शांतिनाथ जिननें कीर्तन कर्ये छते वंदन करनारनां सर्व पाप विशेषे शांत थाय छे अने पुन्य वधे छे. ४२ ॥ इति अजितशान्तिस्तवन संपूर्णम् ॥ पुणं-पुण्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|

Loading...

Page Navigation
1 ... 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455