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॥ अथ राइप्रतिक्रमणनी विधि ॥
प्रथम हरियाant परिनि सामायिक लेवं पछी उभा थइ खमासमण दइ कहे .
इच्छा करेग संदिसह भगवन् कुसुमिण दुसुमिण राइ प्रायश्चित्त विशोधनार्थं काउस्सग्ग करूं, गुरु कहे करेह. इच्छं करेमि काउस्सगं.
अन्नात्थ कही चार लोगस्स अथवा सोळ नवकारनो काउस्सग्गा करी, खमासमण दइ कहेवुं.
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? इच्छं । "
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३४ श्री जगचिंतामणि चैत्यवंदन
( आ चैत्यवंदनमां चोवीसे तीर्थकरोनी स्तुति करे छे. - )
अविनये बेसे ५, भत विगेरेने ओटुं दइ बेसे ६, शरीर परनो मेल उतारे ७, खरज खणे ८, पग उपर पग चडावे ९, अंग उघाडां करे १०, जंतुओना उपद्रवथी डरीने चोतरफथी शरीरने ढांके ११, तथा निद्रा ले १२.
* गौतमस्वामी ज्यारे अष्टापदपर्वत पर जात्रा करवा गया त्यारे तेमणे आ चैत्यवंदन कर्युं छे.
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