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सय -सो
सहस्स -- हजार
छन्नवइ-- छन्नु
गाम-गाम
नदीना पूल बांधे. इत्यादि बांधकाम करे. १४ स्त्रीरत्न अत्यंत अद्भूत रूपवंत चक्रवर्तिने भोग योग्य होय. ए प्रत्येक रत्न एक हजार यक्षोए अधिष्ठिने होय अने बे हजार यक्ष चक्रीनी बे बाहुना अधिष्ठित होय एम १६ हजार यक्ष चक्रवर्तिना सेवक होय. चक्र, दंड, छत्र अने चर्म ए चार आयुधशाळामां उत्पन्न थाय. खड्ग, कांगिणी अने मणि एत्रण भंडारमां उत्पन्न थाय. गज अने अश्व वैताढ्य पर्वतमा उपजे, स्त्री रत्न क्षत्रीय राजाने घेर थाय अने बाकीना चार चक्रीना नगरने विषे
उत्पन्न थाय.
४ नव निधाननुं स्वरूप आ प्रमाणे जाणवु - १ ग्राम ( फरती वाडी होते ) आकर ( मीटुं पाके ते ), नगर ( राजधानी थाय ते ), पाटण ( जळ अने स्थळना मार्ग होय ते ), द्रोणमुख ( ज्यां जळमार्गज होय ) मंडप ( अढी गाउ फरतां गाम न होय ते ), सैन्य अने गृहनी मांडणी ए सर्व नैसर्पि नामे निधानने विषे होय. २ गणित, गीत, चोवीश जातना धान्यना बीज तथा तेनी उत्पत्तिना प्रकार ए सर्व पांडुक विधानमां होय. ३ सर्व जातना आभरण, अश्व तथा हाथीना आभरण, तेना विधि पिंगलक निधानने विषे होय. ४ चक्रवर्तिना चौद रत्न विगेरे सर्वरत्न चोथा निधानना योगे थाय. केंटलाएक कहे छे के आ निधानथी ते त्नो महा दिप्तिवंत थाय वस्त्रनी उत्पत्तिनां प्रकार रंगनी उत्पत्ति, सात धातु, वस्त्र धोवानी रीत वगेरे महापद्म निधानमां होय. ६. समस्त काळ ज्ञान ( ज्योतिष्क ),
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सामी - स्वामी
कोडि-क्रोड
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