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भावार्थ:-महान् दुःखथी अटकावी शंकाय एवा राग-द्वेष-- मोह आदि महान् शत्रुओना समुदायने रोकवावाळा, तथा पृथ्वी आदि छ काय जीवोना रक्षण करवावाळा, अने योगीओना स्वामी एवा अरिहंत भगवंत परम तीर्थकर, श्री महावीर स्वामीने नमस्कार थाओ. १.
(आर्या छंद) मू०-मंदिरगिरिवरधीरः, प्राप्तभवापारनीरनिधितीरः। निर्जितमन्मथवीरः, श्रियेऽस्तु स श्रीमहावीरः॥२॥
.शब्दार्थ:मंदिर-मंदराचळ पर्वत (मेरु) । तीर:-कांठो गिरि-पहाड
निजित-जीत्यो छे वर-श्रेष्ठ
मन्मथ-कामदेव 'धीरः-धीरजवाळा
वीरः-वीर माप्त-पामेला, भव-संसार
श्रिये कल्याण माटे अपार-कांठो नथी जेनो अस्तु-हो नीर-पाणी निधि-भंडार
| श्रीमहावीर-बीर भगवान भावार्थ:--मेरु पर्वत जेवा धीर अने महा मुश्केलीए पण पार न पमाय तेवा संसाररूप समुद्रने तरी गयेला तथा कामदेव रूप धीरने जीतनार एवा श्री महावीर स्वामी अमने कल्याण करो २.
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