Book Title: Padmapuran Part 1
Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 7
________________ प्रधान सम्पादकीय [प्रथम संस्करण] रामकथा भारतीय साहित्यका सबसे अधिक प्राचीन, व्यापक, आदरणीय और रोचक विषय रहा है। यदि हम प्राचीन संस्कृत प्राकृत साहित्यको इस दृष्टिसे मापें तो सम्भवतः आधेसे अधिक साहित्य किसी न किसी रूपमें इसी कथासे सम्बद्ध, उद्भूत या प्रेरित पाया जायेगा। वैदिक परम्परामें वाल्मीकिकृत रामायण प्राचीनतम काव्य माना जाता है। उस परम्पराका उत्कृष्टतम महाकाव्य कालिदासकृत 'रघुवंश' है जिसका विषय वही राम-कथा है। और महाकवि भवभूतिके दो उत्कृष्ट नाटक 'महावीर चरित' और 'उत्तर-रामचरित' भी पूर्णतः रामकथा विषयक ही हैं। बौद्ध-परम्परामें यद्यपि इस कथाका उतना विस्तार हुआ नहीं पाया जाता, तथापि पाली-साहित्यके सुप्रसिद्ध 'जातक' नामक विभाग के 'दसरथ जातक' में यह कथा वणित है। और उसमें भगवान बुद्ध का ही जन्मान्तर राम पण्डितके रूपमें माना गया है। यह कथा संक्षिप्त है और हत अंशोंमें अपने ढंगकी विलक्षण भी है। इसकी सबसे बडी विलक्षणता है राम और सीता दोनोंको भाईबहन मानना व दोनोंका वनवाससे लौटने के पश्चात् विवाह होना । जिस वंशमें भगवान् बुद्ध उत्पन्न हुए थे, उस शाक्य-वंशमें भाई-बहनके विवाह होने की प्रथाके उल्लेख मिलते हैं । मिश्र आदि सेमेटिक जातियों में भी इस कथाका बहुत प्रचार रहा है। जैन पुराणोंके अनुसार भोगभूमियोंमें सहोदर भाई-बहनके विवाहको स्थिर प्रणाली रही है। जैन परम्परामें रामको त्रेसठ शलाकापुरुषों में वासुदेव के रूपमें गिना गया है और उनके जीवन चरित्र सम्बन्धी बड़े-बड़े पुराण भी रचे गये हैं। रामका एक नाम पद्म भी था और जैन पुराणोंमें उनका यही नाम अधिक ग्रहण किया गया है। रामकथा सम्बन्धी सबसे प्राचीन जैन पुराण संस्कृतमें रविषेण कृत पद्मपुराण, प्राकृतमें विमलसूरि कृत पउम-चरिय और अपभ्रंशमें स्वयम्भूकृत 'पउम-चरिउ' है। यह चरित्र जिनसेन गुणभद्र कृत संस्कृत महापुराणमें, पुष्पदन्त कृत अपभ्रंश महापुराणमें और हेमचन्द्र कृत संस्कृत त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरितमें भी पाया जाता है। कथा की समता-विषमताकी दृष्टिसे इस साहित्यको हम दो श्रेणियोंमें विभाजित कर सकते हैं। एक श्रेणी में हैं विमलसूरि, रविषेण, स्वयम्भू और हेमचन्द्रकी रचनाएँ और दूसरी श्रेणीमें गुणभद्र और पुष्पदन्तकी रचनाएँ। इस दूसरी श्रेणीकी रचनाओंकी प्रथमसे सबसे बड़ी विलक्षणता यह है कि वे रामके पिता दशरथको बनारसके राजा मानकर चलते हैं तथा सीताको रावणकी रानी मन्दोदरीके गर्भसे उत्पन्न बतलाते हैं । यह मान्यता-भेद क्यों उत्पन्न हुआ यह एक अध्ययनका विषय है। रामकथा विषयक जो दो सबसे प्राचीन और महान रचनाएं संस्कृतमें रविषेणाचार्य कृत पद्मपुराण और प्राकृत में विमलसूरि कृत पउमचरियं-हैं, उनके विषयमें अनेक चिन्तनीय बातें उत्पन्न होती हैं। दोनोंका कथानक सर्वथा एक ही है। यही नहीं, दोनोंको परस्पर मिलाकर देखने से इसमें किसीको कोई सन्देह नहीं रहता कि वे एक दूसरेके भाषात्मक रूपान्तर मात्र हैं। किसने किसका अनुवाद किया है, यह उनके रचनाकाल-क्रमसे जाना जा सकता था। किन्तु इस विषयमें एक कठिनाई उठ खड़ी हुई है। रविषेणने अपनी रचना वि. सं. ७३३ में समाप्त की थी। इसका ग्रन्थमें ही उल्लेख है और उसपर किसीको कोई सन्देह नहीं है। किन्तु विमलसूरिने अपनी कृतिकी समाप्तिका जो काल-वि. सं. ६० सूचित किया है उसे डॉ. विण्टर्नीजने तो स्वीकार किया है, किन्तु अन्य बहुत-से विद्वान् उसे मानने को तैयार नहीं हैं। जर्मन विद्वान डॉ. हर्मन जैकोवी, जिन्होंने इस ग्रन्थका सर्वप्रथम सम्पादन किया, ने अपना यह सन्देह प्रकट किया कि इस ग्रन्थमें प्राकृत भाषाका जो स्वरूप प्रकट हुआ है और उसमें कहीं-कहीं जिन विशेष शब्दोंका प्रयोग किया गया है, उससे यह रचना विक्रमकी प्रथम शताब्दीकी नहीं किन्तु उसकी तीसरी-चौथी शताब्दीकी प्रतीत होती है। डॉ. वुलनरके मतानुसार तो यह ग्रन्थ अपनी कुछ शब्दरचनासे अपभ्रंश कालका संकेत करता है । पं. केशवलाल ध्रुवने इस ग्रन्थमें प्रयुक्त विभिन्न छन्दोंका अध्ययन किया है जिससे उनका मत भी डॉ. बुलनरके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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