Book Title: Padarth Prakash 22 Yatidin Charya
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 181
________________ 158 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता अष्टविधं कर्म शोधयति-निराकरोति, तथा विहारे लाभोऽपि गरीयान्, उक्तं च - "समणाणं सउणाणं भमरकुलाणं च गोकुलाणं च / अणिययाउ वसहीउ साड्याणं च मेहाणं // 1 // दसणसोही थिरभावभावणा अइसयत्थकुसलत्तं / जणवयपरिक्खणाविय अणीययवसहीगुणा हुंति // 2 // " अथाविहारपक्षे के दोषाः ?, उक्तं च - "पडिबंधो लहुयत्तं अजणुवयारो अदेसकुसलत्तं / नाणाईण अवुड्डी दोसा अविहारपक्खंमि // 1 // " अथ विहारोद्यतेन साधुना किं चिन्त्यं ?, तदाह - "तिहिकरणंमि पसत्थे नक्खत्ते अहव सयस्स अणुकूले / चित्तूण निति वसहा अक्खे सउणे परिक्खंता // 1 // " ते शकुना एव के ?, उक्तं च - "जंबू चास मयूरे भारदाए तहेव नउले य / दंसणमेसि पसत्थं पयाहिणे सव्वसंपत्ती // 1 // नंदी तूरं संपुन्नदंसणं संखपडहसदो अ। भिंगारछत्तचामर एवमाई पसत्थाणि // 2 // समणं संजयं दंतं, सुमणं मोअगा दहि / मीणं घंटा पडागं च, सिद्धमत्थं वियागरे // 3 // " अतोऽप्रशस्तशकुनाः - "मइलकुचेले अभिग इल्लीए साण खुज्ज वडभे य / एए य अप्पसत्था, हवंति खेत्ताउ निंताणं // 1 //

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