Book Title: Padarth Prakash 22 Yatidin Charya
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
View full book text ________________ 199 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता ततः प्रतिलेखनां कथं कुर्वन्ति तदाह - पडिलेहणवसहिपमज्जणाउ दाऊण दो खमासमणे / पुत्तिं पेहिय दोहिं तणुपेहं संदिसावेइ // 116 // (ईर्यां कृत्वा प्रतिलेखनावसतिप्रमार्जनयोः) तथेह क्षमाश्रमणद्वयं दत्त्वा पोतिकां मुखवस्त्रिकां-प्रतिलेखयित्वा तदनु पुनरपि द्वाभ्यां क्षमाश्रमणाभ्यां लघुवन्दनरूपाभ्यां तदनु प्रतिलेखनामवगम्य प्रतिलेखनां संदेशापयति // 115 // अथात्र प्रतिलेखनायां विशेषमाह - उववासिय सव्वोवहिपज्जते चोलपट्टगं पेहे / इयरो पढमं पट्ट रयहरणं सव्वओ पच्छा // 117 // इह तृतीयप्रहरप्रतिलेखनासमये खु निश्चितं सर्वोऽपि-सकलोऽपि उपोषितः साधुवर्ग:-कृताभक्तप्रत्याख्यानः पर्यन्ते-सकलोपधिपर्यन्ते चोलपढें-अध:परिधानवस्त्रं प्रतिलेखयति, सर्वसाधुरिति शेषः, यदाहु:"पभणंति खमासमणे गुरू तओ साहुणोवि पढमंमि / पडिलेहणं करेमो बीए वसहि पमज्जेमो // 1 // पुत्तिं पट्टा गुच्छग केसरिया पत्तबंध पडलाई / रयत्ताण पत्तठावण मत्तगपत्तं च पेहंति // 2 // " // 116 // ततोऽपि को विधिविधेयः तदाह - वसहि पमज्जण ठवणागुरु उवहिं कट्ट पेहए पुतिं / कट्ट सज्झायमोही थंडिल्लं संदिसावेइ // 118 // ततस्तदनन्तरं वसतेः उपाश्रयस्य प्रमार्जनं तदनु स्थापनाचार्यप्रतिलेखनं तत उपधिमुखवस्त्रिकाप्रतिलेखनं, पश्चात् स्वाध्यायकरणं,
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