Book Title: Padarth Prakash 22 Yatidin Charya
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 228
________________ 205 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता यदाहुः "उक्कोसो अट्टविहो मज्झिमओ होइ तेरसविहो य / .. जहन्नो चउव्विहो खलु अज्जाणं होइ विन्नेओ // 1 // " तत्रोत्कृष्टोऽष्टविधोऽसौ-त्रयः प्रच्छादका:-कल्पाः 3 अभितरनिवसनी 4 बहिर्निवसनी 5 सङ्घाट्य: 6 स्कन्धकरणी 7 पात्रकं च 8, आह च - "तिन्नेव य पच्छागा अब्धितरबाहिनिवसणी चेव / संघाडी खंधकरणी पत्तं उक्कोसउवहिमि // 1 // " अथ मध्यममाह, स त्रयोदशधा-पात्रबन्धः 1 पटलानि 1 रजस्त्राणं 3 रजोहरणं 4 मात्रं 5 उपग्रहानन्तकं 6 पट्टकः 7 अोरुकः 8 चलणी 9 कञ्चकः 10 उपकक्षिणी 11 वैकक्षिकी 12 कमढकः 13, आह च - "पत्ताबंधो पडला रयहरणं मत्त मढक रयताणं / उग्गह पट्टो अद्धोरु चलणि ओकच्छि कंचु वेकच्छी // 1 // " अथ जघन्यमाह-पात्रस्थापनं 1 पात्रकेसरिका 2 गुच्छकः 3 मुखवस्त्रिका 4 च, अयं चतुष्प्रकारः, आह च - "मुहपत्ती केसरियं पत्तट्ठवणं च गुच्छओ चेव / एसो चव्विहो खलु अज्जाण जहन्नओ उवही // 1 // " // 123-124 // उक्तः औधिक उपधिः, औपग्रहिक उच्यते - संथारुत्तरपट्टो लट्ठीपमुहो उवग्गहो उवही / फलहाई पाडिहरू आयपमाणा भवे लट्ठी // 125 // संस्तारकः तथा उत्तरपट्टकः-उत्तरीयवस्त्रं अन्यच्च यष्टिप्रमुखोयष्टिप्रभृतिः सर्वोऽप्ययमौपग्रहिक एव, तथा फलहकानि-पट्टिकारूपाणि पाडिहेरुकश्च-कम्बलादिविशेषः, तत्रोपधौ यष्टिरात्मप्रमाणा, देह

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