Book Title: Padarth Prakash 22 Yatidin Charya
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
View full book text ________________ 209 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता "चउभागवसेसाए चरिमाए पोरिसीए कालस्स / पडिकमिऊण कुणंतो थंडिलपडिलेहणं तत्तो // 1 // अहियासियऽणहियासिय बहिरंतो दूरमज्झआसन्ने / मुत्तुच्चारे बारस बारस कालंमि भूमितियं // 2 // पढमप्पहराणीयं असणाइ जईण कप्पए भोत्तुं / जाव तिजामे उड़े तमकप्पं कालअइकंतं // 3 // असणाईयं कप्पइ कोसदुगब्भंतराउ आणेउं / परओ आणिज्जंतं मग्गाईयंति तमकप्पं // 4 // " तथा विहितस्थण्डिलादिकृत्यः पश्चाद्गोचरचर्याप्रतिक्रमणकायोत्सर्गं करोति, आह च - "परिठविय पाणगाई विम्हरिउं वसहिवत्थपडिलेहं / काउं कुणंति गोअरचरियापडिक्कमणउस्सग्गं // 1 // " अत्र कायोत्सर्गे - "गोअरचरिया थंडिल वसहि वत्थपत्तपडिलेहा / संभई सो साहू जस्सवि जं किंचि उवउत्तं // 1 // " इयं गाथा चिन्तनीया, तथा यत्किञ्चिदनाचरितं क्रियाकृत्यं तत् स्मृत्वा-हृदि चिन्तयित्वा प्रायश्चित्तमालोचनारूपं विदधाति-करोति // 133 // अथ दैवसिकप्रतिक्रमणकालनिर्णयमाह - तो पडिक्कमई सूरे अद्धनिबुड्डे जहा भणइ सुत्तं / संमत्ते पडिकमणे ताराउ बि तिन्नि दीसंति // 134 // चेइयवंदण भयवंसूरिउवज्झायमुणिखमासमणा / सव्वस्सवि सामाइय देवसियइयारउस्सग्गो // 135 //
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