Book Title: Padarth Prakash 22 Yatidin Charya
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
View full book text ________________ 216 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता अणुजाणह संथारं निसिही नमो खमासमणगाण इय भणिउं / विहिकयसंथारट्ठिय चेइय वंदित्तु सड़ जिणे // 143 // . अथ प्रहरे अतिक्रान्ते-शर्वरीप्रथमयामे व्यतीते पश्चात् गुरुमुनिविश्रामणादिकृत्यं कृत्वा कामपि निशिथिनीं नीत्वा-कियन्मात्रां रात्रिमुल्लङ्घ्य लघुक्षमाश्रमणपूर्वं पोतिकां प्रतिलिख्य पश्चात् लघुक्षमाश्रमणयुगलेन रात्रिसंस्तारकं संदेशापयति, रात्रिसंस्तारकं संस्थापयामि करोम्यहं च इति भणति, यदाहु:"सज्झायझाणं गुरुजणगिलाणवीसामणाइकज्जेहिं / जामंमि वइक्कंते वंदिय पेर्हिति मुहपोत्तिं // 1 // पढमंमि खमासमणे राईसंथारसंदिसावणियं / पभणंति पुणो बिइए राईसंथारए ठामि // 2 // " // 142 // तथा संस्तारकविधिकरणोद्यतः साधुरनुजानीत संस्तारं निस्सिही नमो खमासमणाणं, निस्सीहि सर्वव्यापारनिषेध इत्यर्थः, यदाहुः "सक्कत्थय पभणंता संथारुत्तरपट्टयं च पेहित्ता। जोइत्ता जाणुवरि ठाविय भूमि पमज्जंति // 1 // तं तत्थ अच्छुरित्ता करजुअलं इत्थ निसिय पभणंति / अणुजाणउ संथारं निस्सीही नमो खमासमणपुज्जाणं // 2 // ठाऊणं संथारे पुतिं पेहित्तु तिन्नि वाराउ। नवकारं सामाइयतिसमुच्चरिउं समासेणं // 3 // कयचउसरणाइविही अट्ठारसपावट्ठाण वोसिरिउं / समय पच्चक्खाणं काउं परमिट्टिसरणं च // 4 // अणुजाणह परमगुरू गुरुगुणरयणेहिं भूसियसरीरा / बहुपडिपुन्ना पोरिसि राईसंथारए ठामि // 5 //
Loading... Page Navigation 1 ... 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246