Book Title: Padarth Prakash 22 Yatidin Charya
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
View full book text ________________ 198 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता प्रतिलेख्य दृष्टिप्रतिलेखनां विधाय क्षेत्रदेवतामनुज्ञापयित्वा च यतिःसाधुः उच्चारादि कुरुते, यतः सूत्रे - "वच्चमुत्तं न धारए।" यदाहु:"अह बाहिरभूमीए जलपत्ताणि गहाय गच्छन्ति / आवस्सियं तु कुव्वं इरियासमिया अभासंता // 1 // विच्छिन्ने दूरमोगाढे, नासन्ने बिलवज्जिए / तसपाणबीयरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे // 2 // " // 113-114 / / तथा वृत्तोच्चारादिकर्मणः पश्चात् साधुः किं करोति ? तदाह - वोसिरिऊण तिखुत्तो वसहिं आगम्म कुणइ किच्चाई / पच्छिमजामे पभणइ पत्तो पडिलेहणासमओ // 115 // ततः उच्चारादिकं विधाय पश्चात् वोसिरइ इति वारत्रयं भणित्वा पश्चाद्वसति-उपाश्रयं ईर्यासमितिविधिना आगत्य अपराणि धर्मकृत्यानि करोति, तत्रापि ईर्यापथिकी प्रतिक्रमितव्या, यदाहुः - "गंतूण वसहिदारे पाय पमज्जिय निसीहियं काउं / इरियापडिकमणेणं गमणागमणाइ वियडंति // 1 // हत्थसयादागंतुं गंतुं व मुहुत्तगं जहिं चिढ़े। पंथे वा वटुंते नइसंतरणे य पडिकमणं // 2 // कज्जस्स य 2 समये 2 करिज्जमाणस्स / जइ हुज्ज समयसेसं तो तत्थ करिज्ज सज्झायं // 3 // " इति पूर्वोक्तस्वरूपां क्रियां कुर्वतः साधोः पश्चिमयामे-प्रान्ते पश्चिमप्रहरे आगते भणति-कथयत्युच्चैःस्वरेण प्रतिलेखनासमयः प्राप्तः-तृतीयप्रहरप्रतिलेखनायाः कालः आगतः, यदाहुः"पच्छिमजामं सेसं सम्मं जाणित्तु समयतत्तन्नू / वागड़ खमासमणा ! पत्तो पडिलेहणासमओ // 1 // " // 115 //
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