Book Title: Padarth Prakash 22 Yatidin Charya
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 199
________________ 176 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता परियट्टियं इमं पुण जं दिज्जइ गहिय वत्थुणा वत्थु / तं अभिहडं जमाणियमन्नठाणाउ मुणिकज्जे // 84 // उब्भिन्नं कूडाइसु घयाइ दाणाय मट्टिया भिहडं। मालोहडं जहत्थं पराउ हड गहियमच्छिज्जं // 85 // अणिसिटुं बहुसंतियमेगेणं दिन्नमहऽज्झोयरओ / आयरियस्स नियट्ठा साहु निमित्तं उवरि पूरो // 86 // यत्र गृही-गृहस्थो यदा भक्तादि-चतुर्विधमशन 1 पान 2 खादिम 3 स्वादिम 4 रूपं, तत्राशनं शालितण्दुलरूपादि 1 पानं सौवीरतन्दुलधावनादि 2 खादिम-फलपुष्पादि 3 स्वादिम-हरितकीशुण्ठ्यादि 4 साधोनिमित्तं यतियोग्यं करोति-निष्पादयति तद् आधाकर्म, अथवा सचित्तस्य-अप्रासुकस्य अचित्तीकरणं-प्रासुककरणं वा-अथवा अचित्तस्य प्रासुकस्य प्रकटीकरणं तदप्याधाकर्म, अस्य चत्वारि नामानि, यथा आधाकर्म 1 अध:कर्म 2 आत्मघ्नं 3 आत्मकर्म चेति 4, एतेषामेतत्त्रयार्थः पिण्डविशुद्धेरवसेयः, यदाहुः - 'अट्ठवि कम्माइं अहे बंधइ' इत्यादि / तथा च तत्सूत्रं-आहाकम्मं णं भुंजमाणे समणे निग्गंथे कि बंधइ किं पकरेइ किं चिणइ ?, गो० ! आहाकम्मं भुंजमाणे आउअवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबन्धणबद्धाओ धणियबन्धणबद्धाओ पकरेइ, हस्सकालठितीआओ दीहकालठितीआओ पकरेइ, मन्दाणुभावाओ तिव्वाणुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुपएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ सिय नो बंधइ, असायावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो 2 उवचिणइ" इत्यादि // 80 // __अथ द्वितीयमौद्देशिकाख्यमाह - तु पुनः तदौद्देशिकं यत्र कूरादिओदनादि दध्ना साधु साधुमुद्दिश्य उल्लवणं-पवित्रीकरणं 1, इदमौद्देशिकं

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