Book Title: Padarth Prakash 22 Yatidin Charya
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 191
________________ 168 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता लोकनाथस्य भुवनगुरोः पारणके-तपसो द्वितीयदिने इक्षुरस आसीत्अभवत्, शेषाणां तीर्थकृताममृतरसरसोपमं परमान्नं-पायसं आसीत् // 67 // तथा गौतमोऽपि भगवान् गणभृत् जयतु, कथम्भूतः ?-अक्षीणमहानसीलब्धिसंयुक्तः यस्य गौतमस्य प्रसादेनाद्यापि-वर्तमानकालं यावत् सुसाधवः-चारित्रिणः भरते-भरतक्षेत्रे सुस्थिताः समाधिभाजो वर्तन्ते // 68 // तथेदं गाथायुगलं भणित्वा साधुः कथं विचरति तदाह - इय भणिउं उवउत्तो अदीणवयणो पसन्नमणदिट्ठी / उंछवित्तीइ विहइ इच्छाकाराइजयणाए // 69 // इति - पूर्वोक्तं प्रथमप्रणीतं गाथायुगलं भणित्वा उद्युक्तःआलस्यरहितोऽदीनवदनो-विकसितवदनः तथा प्रसन्नमनोदृष्टिः, प्रसन्नंनिर्मलं मनः-चित्तं दृष्टिर्यस्यासौ, उञ्छवृत्त्या-स्तोकादानव्यापारेण विचरन् अशनादि गृह्णाति, यदाहुः - "जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो आवियइ रसं / न य पुष्पं किलामेइ, सो अ पीणेइ अप्पयं // 1 // " इत्याद्यत्र द्रुमपुष्पिकाध्ययनं बोद्धव्यं, ग्रन्थगौरवभयान्न लिख्यते / तत्राशनग्रहणे गौचरचर्यायामष्टौ वीथय:-अष्टौ मार्गाः, यदाहुः - "उज्जू गंतुं 1 पच्चागई य 2 गोमुत्तिया 3 पयंगविही 4 / पेडा य 5 अद्धपेडा 6 अब्भंतर 7 बाहिसंबुक्का 8 // 1 // ठाणाउ उज्जुगइए भिक्खंतो वलइ अनडंतो पढमाए 1 / बीयाए एमेव य पविसइ निस्सइ भिक्खंतो 2 // 2 // वामाउ दाहिणगिहे भिक्खिज्जइ दाहिणाउ वार्ममि / जीए सा गोमुत्ती 3 अद्दवियद्दा पयंगविही 4 // 3 //

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