Book Title: Padarth Prakash 22 Yatidin Charya
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
View full book text ________________ श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता 165 __ अथ चैत्यनमस्कारप्रस्तावात् साधोः कियन्ति चैत्यवन्दनानि इत्याहपडिकमणे चेइहरे भोअणसमयंमि तहय संवरणे / पडिकमण सुअण पडिबोहकालियं[इय]सत्तहा जइणो // 63 // साधोः प्रथमा चैत्यवन्दना प्रतिक्रमणे-रात्रिप्रतिक्रमणे 1 द्वितीया चैत्यगृहे-जिनभवने 2 तृतीया भोजनसमये-चारवेलायां 3 चतुर्थी संवरणे कृतभोजन: साधुः सततं चैत्यवन्दनं करोति 4 तथा पञ्चमी प्रतिक्रमणे-दैवसिकप्रतिक्रमणे 5 षष्ठी शयने संस्तारककरणसमये 6 सप्तमी प्रतिबोधकाले-निद्रापरित्यागे 7, एताः सप्त चैत्यवन्दना यतिनो ज्ञातव्याः, यदाहुः"साहूणं सत्त वारा होइ अहोरत्तमज्झयारंमि / गिहिणो पुण चियवंदण तिय पंच य सत्त वा वारा // 1 // पडिकमओ गिहिणोऽवि हु सत्तविहं पंचहा उ इयरस्स / होइ जहन्नेण पुणो तीसुवि संझासु इय तिविहं // 2 // " अथ तस्याश्चैत्यवन्दनाया जघन्यादयः कियन्तो भेदा इत्याशङ्क्याह - नवकारेण जहन्ना दंडगथुइजुअल मज्झिमा नेया। उक्कोसा विहिपुव्वं सक्कत्थयपंचनिम्माया // 64 // नमस्कार:-प्रणामस्तेन जघन्या चैत्यवन्दना, नमस्कारः पञ्चधा - "एकाङ्गः शिरसो नामे, व्यङ्गस्तु करयोर्द्वयोः / अङ्गत्रयाणां नमने, करयोः शिरसस्तथा // 1 // चतुर्णां करयोन्विोनमने चतुरङ्गकः / शिरसः करयोर्जान्वोः, पञ्चाङ्गः पञ्चमो मतः // 2 // "
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