Book Title: Nitivakyamrut me Rajniti Author(s): M L Sharma Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 8
________________ भारत में राजनीतिशास्त्र के अध्ययन की परम्परा पाश्चात्य विद्वानों की यह धारणा, कि राजशास्त्र का विकास ग्रोस अथवा यूनान में हुआ, नितान्त भ्रमपूर्ण है। प्लेटो और अरस्तु से बहत पूर्व भारत में राजनीति शास्त्र का विधिवत् अध्ययन प्रारम्भ हो गया था । भारतीय परम्परा तो राजनीतिशास्त्र की सत्ता सृष्टि के प्रारम्भ से ही मानती है। महाभारत के शान्तिपर्व के ५९३ अध्याय में लिखा है कि समाज को व्यवस्था को ठीक रखने के लिए प्रजापति ने एक लाख अध्याय वाले नीतिशास्त्र की रचना की। इसमें धर्म, अर्थ, काम त्रिवर्ग वथा चातुर्वर्ग मोक्ष और उसके त्रिवर्ग सरव, रज और तम का विवेचन किया था । इसके साथ ही उन्होंने दण्डज त्रिवर्ग-स्थान, काय तथा नशिप:--सि, श, काल, उपाय, कार्य और सहाय के अतिरिक्त आन्वीक्षिकी, वयो, वार्ता और दण्डनीति इन चारों राजविद्याओं और इनसे सम्बन्धित विषयोंका वर्णन किया था। वात्स्यायनके कामसूत्रमें भी यही बात कही गयी है कि प्रजापति ब्रह्मा ने त्रिवर्गशासन-धर्म, अर्थ और काम-विषयक महाशास्त्र की रचना की, जिस में एक लाख अध्याय थे। यह ग्रन्थ अत्यन्त विशाल था। अतः उस को सरल और सुबोध बमाने के उद्देश्य से विशालाक्षा ने दस हजार अध्यायों में उस को संक्षिप्त किया। विशालाक्ष महादेवजी का ही दूसरा नाम है, मयोंकि वे त्रिकालदर्शी थे। विशालाक्ष के पश्चात् उस नीतिशास्त्र की रचना इन्द्र ने पांच हजार अध्यायों में को, इस के उपरान्त बृहस्पति ने उस को संक्षिप्त कर के तीन हजार अध्यायों में लिखा। मीतिप्रकाशिका में भी प्राचीन राजशास्त्र प्रणेताबों के नामों का उल्लेख मिलता है। उस में लिखा है कि ब्रह्मा, महेश्वर, स्कन्द, हन्द्र, प्राचेतसमनु, बृहस्पति, शुक्र, भारद्वाज, वेदव्यास, गौरशिरा आदि राज१. महा० शान्ति १६. २६, ३१ । तघ्यायसहवाण शतं 'बके स्वबुद्विजम् । यत्र धर्मस्तवार्थः कामश्चैवामिवर्णितः । विमर्ग इति पिल्यातो गण एप स्वयम्भुवा । चट्टी मास इत्येव पृथगः पृथा गुणः । मोक्षस्वास्ति त्रिवर्गोऽन्यः प्रोक्तः सरवं रजस्तमः । स्थान वृद्धिः सयश्चैव निवर्गश्चैव दण्जः ॥ २. बारस्यायन कामसूत्र, १०१। प्रगतिहि प्रजाः सृष्ट्वा तास स्थितिनिबन्धन निर्गस्थ साधनमध्यायानो शप्तमहणाने प्रोवाच । ३. महा० शान्सि०५६.८१, ८५ । मारत में राजनीतिशास्त्र के अध्ययन की परम्पराPage Navigation
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