Book Title: Nandanvan Kalpataru 2005 00 SrNo 15
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 22
________________ - | * सुरेश आद्गुणः' करोति सिद्धिम्, 'वृद्धिरेचि' सर्वदैव वृद्धिम् । द्वयोः सूत्रयोः संस्मृतिकरणम्, प्रणम पाणिनि वैयाकरणम् ॥५॥ हिमालयो दीर्घेण हि सिद्धः, श्रीशस्त्वीकारेण हि वृद्धः । अक: सवर्ण दीर्घस्मरणम्, प्रणम पाणिनिं वैयाकरणम् ॥६॥ * 'शिवेहि' ओमाडोः पररूपम्, 'हरेऽव विष्णोऽव' पूर्वरूपम्, एङ: पदान्तादतिस्मरणम् प्रणम पाणिनिं वैयाकरणम् ॥७॥ * 'देवायिह' पाणिनिमतमेतत्, _ 'देवा' इह' शाकल्यमते तत् ।। हरी रम्योऽणो दीर्घरमणम्, प्रणम पाणिनिं वैयाकरणम् ॥८॥ * * । १. अत्र 'लोपः शाकल्यस्य' इतिसूत्रेण 'य'लोपो भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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