Book Title: Nandanvan Kalpataru 2005 00 SrNo 15
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 21
________________ पूर्णम् पाणिनि वैयाकरणम् डॉ. आचार्यरामकिशोरमिश्रः ___२९५/१४, पट्टीरामपुरम् खेकड़ा (बागपत) उत्तरप्रदेश:-२०११०१ अष्टाध्यायीरचनाकारम्, वैयाकरणकण्ठकृतिहारम्, दाक्षीपुत्रं व्रज तं शरणम्, प्रणम पाणिनिं वैयाकरणम् ॥१॥ गुरुपवर्षप्रसादयितारम्, योऽकृत संस्कृतस्य चोद्धारम्, भाषानियमसूत्रनिर्झरणम्, प्रणम पाणिनि वैयाकरणम् ॥२॥ • जनके नाऽज्ञातेन हि जातम्, . मातुम्निा भुवि विख्यातम्, शाकल्य-स्फोटायन-भरणम्, प्रणम पाणिनिं वैयाकरणम् ॥३॥ 'इको यणचि' इह प्रत्याहारैः, यः सूत्रयति हि विविधप्रकारैः । • सुध्युपास्य-मध्वरि-संस्मरणम्, प्रणम पाणिनिं वैयाकरणम् ॥४॥ Jain Education International ६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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