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णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन पर भाई, क्या यह सोचना सही है ? अरे रात का चौकीदार रखा है तो रात को चोरी नहीं हुई, भले ही दिन को हो गई। इससे अच्छी चौकीदारी और क्या हो सकती है कि चौकीदार के कारण चोर रात को तो चोरी न कर सका, पर दिन को चोरी करने में सफल हो गया। इससे तो चौकीदार की उपयोगिता ही सिद्ध हुई है। यदि आप चाहते हैं कि भविष्य में दिन को भी चोरी न हो तो एक चौकीदार दिन को भी रखो।
इसीप्रकार जब यह सिद्ध हो गया कि जिस समय णमोकार महामंत्र का स्मरण होता रहा, उस समय पापबंध नहीं हुआ; तब यदि हम चाहते हैं कि हमें कभी भी पापबंध न हो तो हमें सदा ही पंचपरमेष्ठी का स्मरण रखना चाहिए। यही सद्विवेक है, सच्ची समझ है।
जिस कार्य का जितना फल है, उससे अधिक मान लेने से तो कुछ कार्य सिद्ध होनेवाला नहीं है।
यद्यपि णमोकार महामंत्र में कुछ मांगा नहीं गया है; तथापि हम उसके स्मरण से सभी पापभावों से बच जाते हैं। यह सब पंचपरमेष्ठी के स्मरण का ही प्रताप है। ___आचार्य कुन्दकुन्द के मोक्षपाहुड़ में भी इसी भाव की पोषक गाथाएँ प्राप्त होती हैं; जो इसप्रकार हैं -
अरुहा सिद्धायरिया उज्झाया साहु पंच परमेठ्ठी। ते विहु चिट्ठहि आदे तम्हा आदा हु मे सरणं॥ सम्मतं सण्णाणं सच्चारित्तं हि सत्तवं चेव।
चउरो चिट्ठहि आदे तम्हा आदा हु मे सरणं । इनका हिन्दी पद्यानुवाद इसप्रकार है :
अरहंत सिद्धाचार्य पाठक साधु हैं परमेष्ठि पण। सब आतमा की अवस्थाएँ आतमा ही है शरण ॥ सम्यक् सुदर्शन ज्ञान तप समभाव सम्यक् आचरण। सब आतमा की अवस्थाएँ आतमा ही है शरण॥