Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 30
________________ २६ नहीं है । जैनियों के भगवान विषय कषाय और उसकी पोषक सामग्री तो देते ही नहीं, वे तो अलौकिक सुख और शान्ति भी नहीं देते; मात्र सच्ची सुख-शान्ति प्राप्त करने का उपाय बता देते हैं। यह भी एक अद्भुत बात है कि जैनियों के भगवान भगवान बनने का उपाय बताते हैं । णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन N जगत में ऐसा कोई अन्य दर्शन हो तो बताओ कि जिसमें भगवान अपने अनुयायियों को स्वयं के समान ही भगवान बनने का मार्ग बताते हों । भगवान में लीन हो जाने की बात, उनकी कृपा प्राप्त करने की बात तो सभी करते हैं; पर तुम स्वभाव से तो स्वयं भगवान हो ही और पर्याय में भी भगवान बन सकते हो - यह बात मात्र जैनियों के भगवान ही कहते हैं; साथ में वे भगवान बनने की विधि भी बताते हैं । भगवान कहते हैं कि भाई ! तुम किसी अन्य परमेश्वर के प्रतिबिम्ब मात्र नहीं हो, तुम तो स्वयं परमेश्वर हो; तुम किसी के अंश भी नहीं, तुम तो स्वयं परिपूर्ण भगवान हो; तुम किसी की परिछाई भी नहीं हो, तुम स्वयं मूलतत्त्व हो; तुम्हें किसी अन्य में लीन नहीं होना है, स्वयं में ही समा जाना है; तुम्हें किसी अन्य के प्रति समर्पित नहीं होना है, अपने में ही समर्पित हो जाना है; तुम्हारा कल्याण कोई अन्य नहीं करेगा, तुम्हें स्वयं ही अपना कल्याण करना है। तुम अपना कल्याण करने में पूर्णत: समर्थ हो, उसमें अन्य के सहयोग, समर्पण, सेवा, आशीर्वाद की रंचमात्र आवश्यकता नहीं है। जैनदर्शन का मार्ग पूर्ण स्वाधीनता का मार्ग है । देखो तो गजब की बात है न कि हमारे सबसे बड़े ग्रन्थराज तत्त्वार्थ सूत्र के पहले ही सूत्र में भगवान बनने की विधि बता दी है। ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया कि तुम इतना सीखकर आओ, इतनी साधना करो; तब तुम्हें भगवान बनने की विधि बताई जायेगी । क्या कहा, तत्त्वार्थ सूत्र में भगवान बनने की विधि नहीं बताई है, मोक्षमार्ग बताया है। अरे भाई, मोक्षमार्ग और भगवान बनने की विधि में क्या अन्तर

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