Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 82
________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन बहुत कुछ समझाने पर भी वह सेठानी यह मानने को तैयार ही नहीं होती कि बच्चे के साथ कुछ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। क्या है - इस सबका कारण? एकमात्र अपनेपन का अभाव । ७८ कहते हैं - मातायें बहुत अच्छी होती हैं । होती होंगी, पर मात्र अपने बच्चों के लिए, पराये बच्चों के साथ उनका व्यवहार देखकर तो शर्म से माथा झुक जाता है । यह सभी माताओं की बात नहीं है; पर जो ऐसी हैं, उन्हें अपने व्यवहार पर एक बार अवश्य विचार करना चाहिए। एकबार एक दूसरी पड़ोसिन ने बड़े ही संकोच के साथ कहा 'अम्माजी ! मेरे मन में एक बात बहुत दिनों से आ रही है, आप नाराज न हों तो कहूँ? बात यह है कि यह नौकर शकल से और अकल से सब बातों में अपना पप्पू जैसा ही लगता है । वैसा ही गोरा- भूरा, वैसे ही घुंघराले बाल; सब-कुछ वैसा ही तो है, कुछ भी तो अन्तर नहीं और यदि आज वह होता तो होता भी इतना ही बड़ा । " "" उसकी बात सुनकर सेठानीजी उल्लासित हो उठीं, उनके लाड़ले बेटे की चर्चा जो हो रही थी, कहने लगीं - " लगता तो मुझे भी ऐसा ही है। इसे देखकर मुझे अपने बेटे की और अधिक याद आ जाती है । ऐसा लगता है, जैसे यह मेरा ही बेटा हो ।" सेठानी की बात सुनकर उत्साहित होती हुई पड़ोसिन बोली - " अम्माजी ! अपने पप्पू को खोये आज आठ वर्ष हो गये हैं, अबतक तो मिला नहीं; और न अब मिलने की आशा है। उसके वियोग में कबतक दुःखी होती रहोगी ? मेरी बात मानो तो आप इसे ही गोद क्यों नहीं ले लेती ?" उसने इतना ही कहा था कि सेठानी तमतमा उठी 44 'क्या बकती है ? न मालूम किस कुजात का होगा यह ? "

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